________________
MAHARASATSASURESAREERERSAKAsaxcamcexsasuramaraKSATTA
यहाँ अनाचार में व्रत सर्वथा भंग हो जाता है परन्तु अतिचार में व्रत का भंग नहीं होता किन्तु किसी कारणवश उसके व्रतों में थोड़ा दूषण लगता है। प्रत्येक व्रत के पांच-पांच अतिचार बतलाये हैं। बारह व्रतों के पांच-पांच अतः १२ x ५ - ६० अतिचार तथा सम्यग्दर्शन के पांच अतिचार और सल्लेखना के पांच अतिचार सबका जोड़ ६० + ५ + ५ = ७० होते हैं। .
इस प्रकार श्रावक व्रतों में ७० अतिचार होते हैं। अतः व्रत की जैसी पूर्ण शुद्धि कही गई है उसमें ये अतिचार विधात करते हैं, शुद्धि को रोकते हैं। पूर्ण रूप से व्रत को नहीं पालने देते हैं । इसलिए प्रत्येक विवेकी व्रती श्रावक का कर्तव्य है कि प्रमाद को छोड़कर भली प्रकार अतिचारों का परित्याग कर पूर्ण रूप से व्रत रक्षा करें ॥२॥ • सम्यग्दर्शन के अतिचार
शंका कांक्षा ग्लानि पुनि, मिथ्यातिन थुति वैन । चित्त सराहन भी तथा, समकित दूषण एन ॥३॥
अर्थ - शंका - जिनेन्द्र भगवान के वचनों पर शंका करना । कांक्षा - भोगों की चाह करना। ग्लानि अर्थात् विचिकित्सा - मुनि आदि के मलिन
(२) १. सापेक्षस्य व्रते हिंस्यादतिचारोंऽश भंजनं ।
२. अतिक्रमो मानसंशुद्धि हानि, व्यतिक्रमो विषयाभिलाषो तथातिचारं करणालसत्वं भंगो झनाचारमिह व्रतानाम् ॥
अर्थ - ग्रहण किये व्रतों में उसके अंश एक भाग का नाश होना अतिचार कहा जाता है । व्रतों के दोष
२. मन की विशुद्धि में क्षति होना अतिक्रम है, विषयों की अभिलाषा करना व्यतिक्रम है, व्रत पालन में अनुत्साह-प्रमाद होना अतिचार है और व्रत का सर्वथा भंग करना अनाचार है ।।२।। askedIREMEANSAsardarasasamasRRRRREENEReasanaam
धमनिमन श्रावकाचार-२९०