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• इसका समय
यत्लरहित उपसर्ग रुज, जरा भीति दुष्काल।
लखि सविधि धर्मार्थ तव, सल्लेखन व्रत पाल ॥२॥ अर्थ - यत्न रहित उपसर्ग आने पर, असाध्य रोग होने पर, वृद्धावस्था आने पर, भयंकर दुष्काल पड़ने पर धर्म के लिये विधिपूर्वक सम्यक् प्रकार से सल्लेखना व्रत पालना चाहिए !
भावार्थ - प्रतिकार रहित देव, मनुष्य, तिर्यंच व अचेतन कृत कोई घोर उपसर्ग आ जाने पर जिसका कोई इलाज नहीं ऐसा रोग हो जाने पर जब अपने आवश्यक कर्त्तव्य एवं चर्या का सही तरह से पालन नहीं हो पा रहा हो ऐसी
...च कारणवशात् संक्षय: मरणं । मरणान्तः प्रयोजनमस्य इति मारणान्तिकीं। सम्यक्काय कषाय लेखना सल्ले खना। राग-द्वेष मोहाविष्ट स्य हि विषशस्त्राघुपकरण प्रयोग वशादात्मानं घ्नतः स्वघातो (अपघातो) भवति । न च सल्लेखनां प्रतिपन्नस्य रागादयः सन्ति इति ततो न तस्य स्वात्मबध दोषः ।। ___ अर्थ - अपने परिणाम विशेष से प्राप्त आयु इन्द्रियाँ और बल का कारण वशात् क्षय होना मरण कहलाता है। इन्द्रियाँ पाँच और मन, वचन, काय ये तीन बल आयु
और श्वासोच्छ्रास ये दस प्राण हैं, इनका वियोग होना मरण है। मरण के साथ अन्त' पद क्यों है ? मरण-उसी भव में मरण का ज्ञात करना अन्त का प्रयोजन है, मरण ही उसका प्रयोजन हो वह मारणान्तिकीं है। सल्लेखना क्या है ? सम्यक् प्रकार से शरीर
और कषायों को कृश-क्षीण करना सल्लेखना है। यदि स्वयं शरीर को क्षीण करना है तो यह आत्मघात हुआ ? इस प्रश्न का उत्तर है - आत्मघात में राग-द्वेष, मोह के वशीभूत होकर कटु अभिप्राय से प्राण त्याग करता है। सल्लेखना में न राग है, न द्वेष व मोह न कोई आवेश अपितु हर्ष, आनन्द एवं स्वेच्छा से आत्मसिद्धि का उद्देश्य रहता है। अतः सल्लेखना आत्मघात हत्या नहीं अपितु आत्म स्वरूप प्राप्ति का आह्वान है जो अवश्य करणीय कर्तव्य समझना चाहिए ॥१॥ BRERNMETREASTHASANASAMASASResasaraswarasasanaSasasa
धमिन्द प्रावकाचार-~२७५