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• विद्यादान
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शास्त्र सु विद्यादान से सुख लहे पात्र निकाय ।
निज पर ज्ञान की वृद्धि से पूरण ज्ञान लहाय ॥ २४ ॥
अर्थ- जो दातार उत्तम, मध्यम, जघन्य पात्र को शास्त्र का दान देता है । वह पर के ज्ञान की वृद्धि एवं अपने भी ज्ञान की वृद्धि करता हुआ उस दान से केवल ज्ञान को प्राप्त कर लेता है ।। २४ ॥
• औषधि दान
तनहित औषधिदान से रोग जाय सब भाग ।
परभव में तनमदन सम वह पावे बड़भाग ॥ २५ ॥
अर्थ - जिस प्रकार सूर्य के शरीर से अन्धकार दूर भागता है। और अग्नि
के शरीर से शीत दूर भागता है। उसी प्रकार औषधिदान देने वाले गृहस्थ के शरीर से रोग दूर भाग जाता है। उस दान के प्रभाव से वह दातार परभव में कामदेव के समान सुन्दर शरीर को धारण करता है। वही भाग्यशाली है ।। २५ ।
.. करदे, भूमिदान करे, देवांगनाओं के समान सुन्दर करोड़ों कन्या दान करे तथाऽपि अन्नदान- आहार दान इन सब दानों से बढ़कर फल देने वाला होता है। अभिप्राय यह है कि संसार में प्राण सर्व प्राणियों को प्रिय होते हैं उनका रक्षक अन्न आहार है। अतः आहार दान जीवन दान है इसीलिए सर्वोपरि है ॥ २३ ॥
२४. १. अन्नदानं परमदानं विद्यादानमतः परम् । अन्नेन क्षणिका तृप्तिर्यावज्जीवं तु विद्यया ।। २. विद्याधर्म सर्व घन प्रधानम् ॥
३. अन्यस्मिन्भवे जीवो विमर्ति सकलं श्रुतम् ।
मोक्ष सौख्यमवाप्नोति शास्त्रदान फलाक्षरः ॥
अर्थ - १. अन्नदान उत्तम दान है, तथाऽपि विद्यादान - ज्ञानदान उससे भी..
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धर्मानन्द श्रावकाचार २६७