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STRAVAGASANAREVARERNARDARASARANASANA ACARA • अभयदान
भीतदीन दुखियान के जो दुख करता दूर।
अभयदान उपकार से, वह हो निर्भय शूर ॥२६॥
अर्थ - जो दातार संसार में दुखीजन है, उनका दुख दूर करते हैं अर्थात् जिनको रहने के लिए घर नहीं है उन्हें घर दिलवाना, जिनको खाने के लिए नहीं है उनके भोजन की गलस्था करना जिनले पाए व्यापार रहीं है उनको व्यापार करवाना इस प्रकार जो अपने साधर्मी भाई है उनको दानादि देकर जो उपकार करता है वह दातार निर्भय होकर शूरवीर होता है ।। २६ ।।
...अधिकतर, श्रेष्ठतर है, क्योकि अन्नदान-आहारदान शरीर जन्य बुभुक्षा शान्त होती है और वह भी कुछ समय के लिये ही तृप्ति होती है, पुनः वह पीड़ा प्रारम्भ हो जाती है। ज्ञानदान से उपार्जित ज्ञानावरण कर्म का क्षायोपशम वृद्धिंगत होने से निर्मल सम्यग्ज्ञान की वृद्धि होती है जो आत्मा का स्वभाव है। स्वभाव स्वभावी से कभी पृथक होता नहीं अतः वह ज्ञान भाव जीवन भर बना ही रहता है। और भी
२. "विद्या धन सर्व सम्पदाओं में श्रेष्ठ है। उत्तमोत्तम है।" विशेष देखिये -
३. ज्ञान दाता - शास्त्रदान प्रदाता वर्तमान भव में ही समस्त श्रुत का घारी होता है अर्थात् श्रुतकेवली होता है। आगे कुछ ही भवों में शीघ्रातिशीघ्र अक्षय मोक्ष सुख प्राप्ति का साक्षात कारण केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। अतः निरंतर ज्ञान दान-विद्यादानसम्यक् विद्या दान करना चाहिए। यह अमरत्व पाने का सरल उपाय है ।। २४॥ २५. रोगिणो भैषजं देयं रोगो देह विनाशकः।
देहनाशे कुतोज्ञानं ज्ञानाभावे न निवृत्तिः॥ अर्थ - औषध दान देने से पात्र का रोग नष्ट होता है। रोग शरीर का घातक है, मृत्यु का कारण है। शरीर के नाश होने पर ज्ञानाप्ति कहाँ ? ज्ञान के अभाव में मुक्ति असंभव है। इससे सिद्ध होता है कि औषधदाम से आरोग्यदान, ज्ञानदान, अभयदान और मुक्तिदान भी दिया ऐसा समझना चाहिए। यह दान वैयावृत्ति अंतरंग तप भी है।। २५ ।। SARASAIRRORRIEasasarsanarasamARRESTERNATREENAMEasa
धर्मालमद श्रापकापार ८२६८