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• कुदान निषेध
कनक अश्व तिल नाग, रथ, दासी कन्यादान ।
घर कपिला गऊ विषयद तज दश दान ॥ २७ ॥
अर्थ- जिसके देने से जीव मारे जावे, जिससे रागभाव बढ़ें, जिससे भय उत्पन्न हो, जिससे आरम्भ बढ़े, दुःख उत्पन्न हो ऐसी वस्तु जैसे सोना, घोड़ा, तिल, सर्प, रथ, दासी, कन्यादान, गृह जमीन, कपिला गाय ये धर्म की दृष्टि से दान देने योग्य नहीं है ॥ २७ ॥
• नवधाभक्ति
पड़गाहे उचयान दे, पाद धोय अर्चिनाय ।
२६. १. न भूदानं न सुवर्णदानं न गो प्रदानं न तथा प्रदानम् । यथा वदतीह महाप्रदानं सर्वेषु दानेष्वभय प्रदानम् ॥
अर्थ - यहाँ बताते हैं कि समस्त दानों में श्रेष्ठ-प्रधान- सर्वोत्तम दान अभय दान है- भूमिदान, सुवर्णदान, गौदान तथा अन्य भी जितने दान संभव हैं उनमें महापुरुषों ने अभयदान कहा है।
२. गोदानं हिरण्यदानं च भूमिदानं तथैव च ।
एकस्य जीवितं दद्यात्फलेन न समं भवेत् ॥
अर्थ- गायों का दान, सुवर्ण के दान और विशाल भूमिदान सर्वदान एक और एक प्राणी को जीवन दान देना समान है । जीवन तीन लोक का सम्पदा से अधिक है। इसीलिए तो अहिंसा परमोधर्म कहा गया है || २६ ॥
२७. हिंसार्थत्वान्न भूगेह लोहनोऽश्वादि नैष्ठिकः । दद्यान्न ग्रह संक्रान्ति श्राद्धादौ च सुदृढे गुहि ॥
अर्थ - नैष्ठिक श्रावक हिंसाकर्म हेतु तलघर, तहखाना, लौह श्रृंखला अश्वादि नाल आदि दान में नहीं दे और ग्रहण संक्रान्ति पर्व, श्राद्धकर्म आदि में दान नहीं देना चाहिए। अर्थात् दान नहीं देवें ॥ २७ ॥
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LACAKANZETEMURUASPETERSTUM धर्मानन्द श्रावकाचार २६९