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• व्रत का लक्षण
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अनिष्ट अयोग्य असेव्य का त्याग आप ही होय ।
पुनि इष्टादि का त्याग ही, वास्तव में व्रत जोय ॥ १७ ॥
अर्थ - जो वस्तु है तो शुद्ध किन्तु जिसके खाने से अपने शरीर में वेदना हो जाती है वह वस्तु अनिष्ट है उसका त्याग करना चाहिए। जो वस्तु निंद्य है जिसका सेवन सत्पुरुष नहीं करते हैं। उसे असेव्य कहते हैं ऐसी वस्तु का भी त्याग करना चाहिए। लेकिन जो वस्तु हमको इष्ट है जिनका सेवन सभी सत्पुरुष लोग करते हैं ऐसी वस्तु का भी त्याग करना वास्तव में व्रत है ॥ १७ ॥
• यम नियम का स्वरूप
घंटे दिन पक्षादि युत त्याग नियमव्रत जोय । जीवनांत किसी वस्तु का त्याग ही यम व्रत होय ॥ १८ ॥
... प्रहर, दिन, माह, वर्ष आदि के लिए विषयभोग सामग्रियों के सेवन का त्याग करना नियम कहा जाता है और यावज्जीवन त्याग करना यम कहलाता है। अर्थात् जो व्रत काल की मर्यादा पूर्वक धारण किया जाता है वह नियम है और जीवन पर्यन्त के लिए धारण करना यम है ॥ १६ ॥
१७. यदनिष्टं तद्व्रतयेद्यच्चानुपसेव्यमेतदपि बह्यात । अभिसन्धि कृता विरतिर्विषयाद्योग्यात् व्रतं भवति ॥ ८६ ॥
अर्थ - १. जो अनिष्ट अर्थात् अपनी प्रकृति के विरुद्ध हों, अर्थात् भक्ष्य होने पर अपने स्वास्थ्य के प्रतिकूल पदार्थों का त्याग करना चाहिए क्योंकि अपना अनिष्ट करने वाले हैं । २. जो अनुपसेव्य हैं अर्थात् सेवन करने योग्य नहीं हैं उनका भी त्याग करना चाहिए। क्योकि त्यागने योग्य विषयों का अभिप्राय पूर्वक त्याग करना ही व्रत कहलाता है ॥ १७ ॥
ZAKASAGACELEAUACASASANANZCAYACHEAGAGASALACASASKEKER धर्मानन्द श्रावकाचार २६२