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CACCGABACKYASTEZUMELCASTEASACAEAETEREALAKASALACASA
बाह्य के नाम
अन्न वस्त्र घर खेत पुनि, सोना चांदी घात
दासी - दास पशु बाह्यं ये, बाह्य ग्रन्थ विख्यात ॥ २७ ॥
अर्थ - अनाज, वस्त्र, घर ( मकान ), खेत, सोना, चांदी, दासी दास, पशु एवं बर्तन ये दस बाह्य परिग्रह के भेद हैं ।
आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने पुरुषार्थ सिद्धयुपाय ग्रन्थ में बाह्य परिग्रह के भेद इस प्रकार बतलाये हैं
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अथ निश्चित्तसचित्तौ बाह्यस्य परिग्रहस्य भेदौ द्वौ ।
नैषः कदापि संगः सर्वोप्यतिवर्तते हिंसां ।। ११७ ॥ पु. सि. उ. अर्थ - बाह्य परिग्रह के दो भेद हैं १. अचेतन, २. सचेतन ।
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१. अचेतन रूपया पैसा, बर्तन वस्त्र, मकान जमीन, सोना-चाँदी
आदि जो कुछ जड़ संपत्ति है वह अचेतन परिग्रह है ।
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२. सचेतन - गोधन, हाथी, घोड़ा, बैल, दासी - दास, स्त्री, सोना आदि सभी सचेतन परिग्रह हैं। जिन जीवों से अपना संबंध है उन्हें अपना मानता है वह उसका सचेतन परिग्रह है। इन दोनों प्रकार के परिग्रहों में हिंसा नियम से होती है ॥ २७ ॥
• बाह्य के दोष
लोभ अगिनि की वृद्धिहित, घृत आहुति सम ग्रन्थ । लोभी दुर्गति गमन को परिग्रह सीधा पंथ ॥ २८ ॥
अर्थ - जिस प्रकार हवन में अग्नि की वृद्धि के लिए धृत की आहुति दी
. तथा अनाज के प्रमाण का, नौकर-नौकरानियों के प्रमाण का तथा वस्त्र और बर्तन आदि के प्रमाण का उल्लंघन करना ये पांच परिग्रहपरिमाणाणुव्रत के अतिचार हैं ॥। २७ ॥ ZARAZZUALAGAEMENEASABABAEACABANARAKACACARABASASASA
धर्मानन्द श्रावकाचार २३५