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• इसकी विधि
उत्तर वा पूरब खड़े णमोकार नवबार ।
भुविनत हो दंडवत करे खड़ा होय फिर सार ॥ ४॥
अर्थ - सामायिक करने वाला पहले पूरब या उत्तर दिशा में खड़े होकर नवबार णमोकार मंत्र पढ़े फिर जमीन में बैठे, फिर खड़ा हो इस प्रकार करें ॥ ४ ॥
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पुन:
फिरिफिरि चारों दिशनि में नवत्रय वा नवकार ।
तीन-तीन आवर्त युत इक इक शिरनति धार ॥ ५ ॥
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अर्थ - सामायिक शुरु करने के पहले श्रावक एक दिशा में नवकार या तीन बार णमोकार मंत्र पढ़कर तीन आवर्त कर एक शिरोनति करें। फिर दूसरी दिशा में भी इसी प्रकार चारों दिशाओं में करने के बाद सामायिक शुरु करें ॥ ५ ॥
● आसन ध्यान
अचल योग एकांत में हर्षित ध्यान लगाय ।
अर्थ जिस स्थान में चित्त को विक्षेप करने के कारण नहीं हो बहुत
असंमयी जनों का आना-जाना नहीं हो अनेक लोगों द्वारा वाद विवाद करके कोलाहल नहीं किया जा रहा हो । जहाँ स्त्री, पुरुष, नपुंसक का आना-जाना
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मंत्र शत आठ नित ओं आदि चित ध्याय ॥ ६ ॥
४. द्वि नति, द्वादशावर्त शिरोनति चतुष्टये ।
तत्र योऽनादराभावः सा स्याद्विनय शुद्धिता ||
अर्थ - दो नमस्कार, बारह आवर्त, चार नमस्कार करने में अनादर नहीं करना अर्थात् प्रमाद न कर आदर पूर्वक त्रियोग शुद्धि से करना यह सामायिक का विनय है। विनय पूर्वक करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। अतः सावधानी से करना चाहिए ॥ ४ ॥
TEAIANASABAEACAEZCASASAKALAEACAENEA
धर्मानन्द श्रावकाचार २५३
SATARANA