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• हिंसादान
असि विष आदिक वस्तु को भाड़े मांगे मोल। देन से हिंसा दान अद्य लागत उसे अतोल ॥११॥ अर्थ - बहुत से पुरुष तलवार आदि वस्तुओं को दूसरों को देते फिरते हैं, बहुत से पशुओं को मारने बांधने वाली चीजें - पिंजरा, कैठरा आदि बांटते हैं ये सब चीजें दूसरे जीवों को कष्ट पहुँचाने के किसी काम में नहीं आ सकती, इसलिए इस नारो बांधने लामाले हिंसा के उपकरण हिंसा की सामग्री को दूसरों को दे देने से व्यर्थ ही उनसे की जाने वाली हिंसा का भागीदार बनना पड़ता है। बहुत से लोग चूहों को पकड़ने वाले पिंजरों को घर-२ पहुँचाते हैं। बहुत से मक्खी मच्छर जुआ बिच्छु बर्र आदि विषैले जीवों को मारने वाले विषैले पदार्थों का प्रयोग करते हैं। बहुत से लोग किन्हीं जीवों को ध्वंस करने के लिए अपने यहाँ अग्नि का प्रयोग करते हैं। इत्यादि रूप जो प्रवर्तन है, वह सब हिंसा नाम का अनर्थदण्ड है ॥ ११ ॥
११. १. असिधेनुविष हुताशन लांगल करवाल कार्मुकादीनाम् ।
वितरणमुपकरणानां हिंसायाः परिहरेद्यत्नात् ।। १४४ ॥ पु. सि. अर्थ - छुरी, विष-जहर, अग्नि, हल, तलवार-असि, धनुष, बाण आदि अन्य भी हिंसाकर्म साधक वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए। क्योकि इससे हिंसादान अनर्थदण्ड होता है अतः त्यागने ही योग्य हैं ॥१॥ २. परशु कृपाण खनित्र ज्वलनायुध श्रृंगि श्रृंखलादीनाम् ।
वध हेतूनां दानं हिंसादानं ब्रुवन्ति बुधाः ।। ७७ ॥ र. के. श्रा.॥ अर्थ - फरसा, तलवार, कुदाली, खुरफी, अग्नि, शस्त्र, सींग लौह बेड़ी आदि हिंसा के साधक उपकरणों का दान करना हिंसादान कहलाता है ऐसा बुधजन ज्ञानी आचार्य महाराज कहते हैं। २१॥११॥ ARHAALALARDA SAARALANABASASALALALAR BAHARATA
धर्मानन्द श्रावकाचार-४२४७