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• अपध्यान
पर की हार जयादि युत पुत्र धनादिक हान ।
शाप कोसना चिन्तवन अपध्यान पहचान ।। १२ ॥
अर्थ - जो बिना प्रयोजन खोटा चितवन किया जाता है वह अपध्यान कहलाता है। जैसे - किसी की जय और किसी की पराजय की चिंता करना, दो पहलवानों को लड़ते हुये देखकर अपना उनसे कोई संबंध न होने पर भी चितवन करना अमुक हार जाये अमुक जीत जाये तो अच्छा होगा। इसी प्रकार परस्त्री के संबंध में चितवन करना पर पूजादिक का खोटा चितवन करना, किसी के मारे जाने, बांधे जाने, किसी के सर्वस्य हरण की चिंतवन करना, इत्यादि अनेक बुरे विचार मन में लाना अपध्यान कहलाता है ॥ १२ ॥ • प्रमादचर्या
भू जल अगिनी वनस्पति वायुकायिक जीव ।
आलसी व्यर्थ विनाशते इन पांचौ न सदीव ॥१३ ।। १२. १. वध बंधच्छेदादे द्वेषाद्रागाच्च परकलत्रादेः ।
__ आध्यानमपध्यानं शासति जिन शासने विशदाः॥७८ ॥र. क. श्रा. । २. परदारगमन चौर्याद्याः। न कदाचिन्नपि चिंत्याः पापफलं केवलं यस्मात् ।।
अर्थ - पर स्त्री आदि के मारने, पीटने, बंधन डालने, छेदन-भेदन का राग-द्वेष वश हो चिन्तन करना, विचार करना अपध्यान है। जिन शासन में विशेष ज्ञानी वीतरागी आचार्यों ने यह अपध्यान का लक्षण बतलाया है। अतएव पापवर्द्धक होने से त्यागना चाहिए।
२. आचार्य कहते हैं, हे भव्यजनों!, पाप वर्द्धक कार्यों को कदाऽपि चिन्तवन नहीं करना चाहिए। जैसे किसी की जीत-हार-जय-पराजय, परिग्रह संचय, परस्त्री गमन, चोरी आदि क्योंकि इस प्रकार के अनर्थ कारी कार्य केवल पाप के ही उत्पादक होते हैं१२॥ ANANASASAVRSABAKA
N CALARASAARREANAN धानन्ह श्रावकाचार-२४८