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ASARAKARARARARLALAADURACANADA CARANAER सभी हिंसा की ही पर्याय है। तथा बाह्य परिग्रह में ममत्वरूप परिणाम होना भी हिंसा का कारण है।
भावार्थ - अन्तरङ्ग परिग्रह मिथ्यात्व और कषायभाव हैं वे तो स्वयं हिंसा स्वरूप हैं ही, कारण हिंसा उसे ही कहते हैं कि जहाँ प्रमाद योग से या कषायभावों से प्राणों का अपहरण हो । जहाँ कषायभाव है या मिथ्यात्व है वहाँ आत्मा के शुद्ध भावों का नाश एवं प्रमाद परिणाम है इसलिए अन्तरङ्ग परिग्रह तो स्वयं हिंसा स्वरूप है । बहिरङ्ग परिग्रह स्वयं हिंसारूप नहीं है किन्तु उनमें ममत्व परिणाम होता है इसलिए वे भी हिंसाजनक नहीं हैं किन्तु उनमें ममत्व परिणाम होता है इसलिए वे भी हिंसाजनक हैं यह भावहिंसा का कथन है। बहिरङ्ग परिग्रहों से होने वाली द्रव्यहिंसा को दृष्टि में लेने से द्रव्यहिंसा भी उनसे नियमित है। इसलिए वास्तव में हिंसा स्वरूप, हिंसा का उत्पादक, हिंसा का फल, हिसा का कारण परिग्रह हो है। यदि उसका संबंध छोड़ दिया जाय तो फिर न कभी किसी निमित्त से ममत्व परिणाम उत्पन्न हों, न किसी प्रकार का आरंभ हो और न आत्मीय परिणाम ही विकार रूप धारण करें ।। २९ ॥ • परिग्रही का लक्षण
धन-वस्त्रादिक त्यागि भी, नग्नरूप धरि लेय । जब तक मम ममता वसे, परिग्रही ताहि गिनेय ।। ३०॥ अर्थ - जिन्होंने धन-धान्य वस्त्रादि बाह्य परिग्रहों का त्याग कर नम्मरूप
२९. हिंसा पर्यायत्वात्सिद्धा हिंसाऽन्तरंग संगेषु ।
बहिरंगेषु तु नियतं प्रयतु मूछे व हिंसात्वं ॥ ११९॥ पु. सि. अर्थ - अंतरंग परिग्रहों में हिंसा के पर्याय होने से हिंसा सिद्ध है । बहिरंग परिग्रहों में तो नियम से मूर्छा ही हिंसापने को सिद्ध करती है । हिंसा से भरीत, श्रावक को परिग्रह का यथाशक्ति त्याग करना चाहिए। *ALNRRASACaravana ARKEUNÄRAGAKARAN KARATA
धर्मानन्द प्रावकाचार-२३७