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MAZDA 7020ANANARITUNACARAVANUMARUNARARE A .इसका फल
इमि बहु क्षेत्र के त्यागन से, होय न हिंसा पाप । देशव्रत नित करन से पले अहिंसा आप ॥५॥
अर्थ - इस देशव्रत के पालने से अहिंसाव्रत का पालन अच्छी तरह से होता है, कारण दिग्वत में जितनी मर्यादा की जाती है उसके भीतर तो दिग्वती त्रस स्थावर हिंसा का आरंभादिक करता ही रहता है परन्तु देशव्रत में उस दिग्वत के भीतर भी नियतकाल तक मर्यादा लेकर देशव्रती हिंसा से बच जाता है। तथा अहिंसा व्रत का पालन भी विशेष रूप से होता है। इसलिए प्रत्येक गृहस्थ को इस प्रकार के व्रत धारण करके रात-दिन के हिंसा जनित पापों से बचना चाहिए ॥५॥ • अनर्थदण्ड त्याग का लक्षण
दिग्द्रत भीतर होय जे, वे मतलब के पाप । उन सब के तारण तजे, अनरथ त्यागी आप ॥६॥
अर्थ - दिग्द्रत में बिना प्रयोजन जो हिंसा तथा कषाय वर्धक जो कार्य किया जाता है उसे अनर्थदण्ड कहते हैं। ऐसे जो पापोत्पादक क्रियाओं का त्याग कर देना ही व्रत है।॥६॥
५. इति विरतो बहुदेशात् तदुत्थ हिंसा विशेष परिहारात् । ___तत्कालं विमलमतिः श्रयत्यहिंसां विशेषेण ।। १४० । पु. सि.
अर्थ - इस प्रकार बहुदेश से विरक्त हो जाने पर उस बहुदेश प्रदेश में होने वाली हिंसा विशेष का त्यागी हो जाने से उस समय पर्यन्त
वह निर्मल परिणामी बुद्धि का धारी देशव्रती विशेष रूप से अहिंसा को पालता है ||५|| ६. अभ्यंतरं दिनवधेरपार्थिकेभ्यः स पापयोगेभ्यः ।
विरमणनर्थदण्डव्रतं विदुव्रतधरानण्यः ।। ७४ ।। र, श्रा. I... GASTUAVARREANNOKPARKER KARATURUNUSANAN
धर्मानन्द श्रावकाचार-२४३