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*mudracata AIKANA ataska i कषायभाव और मिथ्यात्व गर्भित हो जाता है। दर्शन मोहनीय और चारित्रमोहनीय ही अंतरंग परिग्रह है उसी के चौदह भेद हैं।
मिथ्यात्व में सम्यक् प्रकृति और सम्यक् मिथ्यात्व प्रकृति इन दोनों का अंतर्भाव हो जाता है इसलिए पिण्यात्व कहता नमोहली के भेदों का ग्रहण हो जाता है। चारित्र मोहनीय के २४ भेद हैं वह संक्षेप से १३ भेदों में आ जाते हैं। अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानुबन्धी, प्रत्याख्यानुबंधी और संज्वलन (इन्हीं के क्रोध-मान-माया-लोभ ये चार भेद करने से १६ भेद हो जाते हैं) तथा हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा ये ६ भेद और स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद तीन ये इस प्रकार १३ प्रकार चारित्र मोहनीय और १ मिथ्यात्व कुल १४ प्रकार का अभ्यन्तर परिग्रह है।
ओ आत्मा के सम्यक्त्व गुण को धाते वह दर्शन मोहनीय हैं। उसके तीन भेद हैं - १. मिथ्यात्व, २. सम्यमिथ्यात्व, ३. सम्यक्प्रकृति ।
१. जिसके उदय से यह जीव सर्वज्ञप्रणीत मार्ग से विमुख, तत्त्वार्थ श्रद्धान करने में निरुत्सुक, हिताहित विचार करने में असमर्थ ऐसा मिथ्यादृष्टि होता है वह मिथ्यात्व है।
२. वह मिथ्यात्व प्रक्षालन विशेष के कारण क्षीणाक्षीण मदशक्ति वाले कोदों के समान अर्द्धशुद्ध स्वरस (विपाक) वाला होने पर सम्यक् मिथ्यात्व कहा जाता है।
३. जिस प्रकृति के उदय से आत्मा के सम्यग्दर्शन गुण में चल-मल अगाढ़ दोष लगता है वह “सम्यक् प्रकृति" है। वही मिथ्यात्व जब शुभ परिणामों के कारण अपने विपाक को रोक देता है और उदासीन रूप से अवस्थित रहकर आत्मा के श्रद्धा को नहीं रोकता है तब सम्यक्त्व होता है। इसका वेदन करने वाला पुरुष सम्यग्दृष्टि कहा जाता है। * AUS NARANA ZNANANANDAKAR CURRAT
धमिच्छ श्रावकाचार-२३३