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Sxsansareeursiesasasasuwasanslamasasikalamasasarsansgeasarsarsa व दूसरों के लिए अहितकर वचन बोलता है वे सभी वचन असत्य वचन हैं। उसके चार भेद हैं। ये मिथ्यावचन संसारी जीवों के लिए दुगंति का कारण एवं अत्यन्त दुःखदायक हैं।
भावार्थ - जो वचन प्रमादपूर्वक एवं सकषायभावों से कुछ का कुछ कहा जाता है वही झूठ के नाम से प्रसिद्ध है। जहाँ पर परिणामों में किसी प्रकार का सकषाय भाव अथवा अन्य मि भाव नहीं है वहाँ गदि कोई गया भी कही जाय तो झूठ नहीं समझा जाता । परन्तु जहाँ सदभिप्राय नहीं है वहाँ यदि अन्यथा बोला जाता है तो वह असत्य ही है। सिद्धान्तकारों ने असत्य का लक्षण बताते हुए कहा है कि जो दूसरे जीवों को पीड़ा देने वाला हो वह सब झूठ। इस लक्षणसे जो बात सत्य भी हो और उससे दूसरे जीवों को कष्ट पहुँचता हो एवं कष्ट पहुंचाने का लक्ष्य रखकर ही प्रयोग करने वाले ने उसका प्रयोग किया हो तो वह सत्य बात भी असत्य में शामिल है। जैसे अंधे को अंधा कहना | इसी प्रकार से जो बात झूठ भी है, परन्तु बिना किसी छल के दूसरों के हित का ध्यान रखकर सदभिप्राय से कही गई है तो वह भी सत्य में शामिल है। इसी बात को असत्य वचन के चार भेदों से समझाया गया है।॥ ८ ॥
८. भाषते नासत्यं चतुः प्रकारकमपि संसृति विभीतः । विश्वास धर्म दहनं विषाद जनन बुधावमतं । २. यदिदं प्रमादयोगादसदभिधानं विधीयते किमपि, तदनृतमपि विज्ञेयं तद्भेदाः सन्ति चत्वारः ॥ {पु. सि, श्लोक ९१)
अर्थ - जो कुछ भी हो, परन्तु जो संसार भीरू सत्पुरुष हैं अर्थात् जिन्हें संसार सागर परिभ्रमण के महाकष्टों का भय है वे चारों प्रकार के असत्यों को नहीं बोलते हैं। क्योकि ये वचन विश्वास का घात करने वाले और धर्मापवन को भस्मकर, पीड़ाविवाद उत्पन्न करते हैं ऐसा आचार्यों का अभिमत है। २. यदि किसी भी प्रकार कुछ भी प्रमाद वश इस प्रकार का असत्य कहा गया हो तो सत्य होने पर भी वह सत्य नहीं, असत्य ही है। इस प्रकार के असत्य के चार भेद हैं।।८॥ Rasasasarzaasasanasaamaasanasamasasanjarasanase
धर्मानन्द श्रावकाचार-२५५