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KARA
अर्थ- जो वचन स्वरूप निन्दनीय दोष सहित, सावद्य और अप्रिय कठोर होता है इस प्रकार यह चौथा असत्य सामान्य रीति से तीन प्रकार का जानना चाहिये ॥ १२ ॥
निन्दित असत्य
निन्दित चुगली वेतुके, गपशप वचन कठोर । धर्मनीति से विरुद्ध भी निन्दित मांहि जोर ॥ १३ ॥
अर्थ - चुगलखोरी, दूसरों की झूठी सांची बुराई करना, हंसी सहित वचन बोलना, क्रोध पूर्ण दूसरे के तिरस्कार करने वाले वचन बोलना, जिन वचनों का कोई अर्थ नहीं है ऐसे निरर्थक एवं निःस्सार वचनों को बोलना और भी जो वचन भगवत् आज्ञा से विरुद्ध, जिनागम-कथित सूत्रों से आज्ञायों से विरुद्ध है वे सब वचन निन्दित असत्य वचन कहलाते हैं ॥ १३ ॥
सावध असत्य -
छेदो भेदो-मारदो, खींचो बहु दुःख देउ ।
१२. गर्हितमवद्यसंयुतमप्रियमपि भवति वचनरूपं यत् । सामान्येन त्रेधा, मतमिदमनृतं तुरीयं तु ॥ ९५ ॥ ( पु. सि. )
अर्थ - जो वचन गर्हित- निंद्यनीय, अवद्य पाप संयुक्त, दोष सहित, अप्रिय अर्थात् पीड़ाकारक कटु कठोर हैं उनका प्रयोग करना, बोलना यह चतुर्थ प्रकार का असत्य है। यह गर्हित, अवद्य और अप्रिय वचनों की अपेक्षा तीन प्रकार का कहा है ॥ १२ ॥ १३. पैशून्य -हास - गर्भं कर्कशमसमंजसं प्रलपितं च ।
अन्यदपि यदुत्सूत्रं, तत्सर्वं गर्हितं गदितम् ॥ ९६ ॥ ( पु. सि. ) अर्थ - चुगली चपारी करना, निष्प्रयोजन किसी को परेशान करने वाले हंसीमजाक करना तथा कठोर - चुभने वाले वचन, सन्देहोत्पादक वचन, यद्वा तद्वा मनमाना बोलना तथा और भी इसी प्रकार के अयोग्य, आगमविरुद्ध, आर्षपरम्परा के विपरीत वचन बोलना सभी गर्हित वचन हैं ॥ १३ ॥
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धर्मानन्द श्रावकाचार २१८