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उसकी शक्ति से अधिक भार, न्याय-नीति से अधिक कार्य भार, दण्डभार, बोझ लादना ये सब अतिभारारोपण अतिचार हैं।
५. आहार - वारणा - स्वाश्रित जीवों को मनुष्य या तिर्यञ्च (पुत्रपुत्री, बहू - नौकर आदि) को समय पर भोजन नहीं देना, जल नहीं देना इत्यादि सब अहिंसाणुव्रत में आहार बारणा नामक अतिचार है।
अहिंसाणुव्रत का निरतिचार पूर्वक पालनार्थ, रक्षार्थ हेतु भव्यात्माओं को निम्न लिखी हुई बातों पर विशेष ध्यान रखना चाहिये ।
१. पर पीड़ाकारक छेदन- भेदन- बन्धन कभी भी नहीं करना चाहिये ।
२. पीड़ाकारक वचन भी मुख से नहीं बोलना चाहिये ।
३. शक्ति से अधिक कार्य किसी से भी नहीं लेना चाहिए ।
४. चार सवारी के ताँगे में ६-७ सवारी नहीं बैठना चाहिए यह भी अतिभारारोपण है।
५. जितने घण्टे कार्य के पैसे लेते हैं, उतने घण्टे ईमानदारी से काम करना चाहिये, स्वामी को भी शक्ति देखकर कार्य कराना व पारिश्रमिक भी पूरा देना चाहिये ।
६. किसी भी प्राणी के आहार में रोक लगाना, कम भोजन देना, समय पर भोजन नहीं हेना आदि कार्य कभी नहीं करना चाहिये ॥ ४ ॥
४. संकल्पात्कृत कारित मननाद्योगस्य चर सत्वान् न हिनस्ति यत्तदाहुः स्थूल बधाद्विरमणं निपुणः ॥ २. स्थावरघाती जीवस्त्रस संरक्षौ विशुद्ध परिणामः योऽक्ष विषया निवृत्तः स संयतोज्ञेयः ॥
अर्थ- जो दयालु संकल्प पूर्वक कृत-कारित अनुमोदना से त्रियोगों से जीवोंस जीवों का घात नहीं करता वह स्थूल हिंसा का त्यागी सत्पुरूष है । २. जो स्थावर जीवों के घातने से तो विरत नहीं है परन्तु त्रस जीवों की हिंसा से विरक्त उनकी रक्षा मे तत्पर रहता है वह संयतासंयत श्रावक कहलाता है। ऐसा जानना चाहिए ॥ ४ ॥
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धर्मानन्द श्रावकाचार २०५
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