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SAMASASABREASTERSARMERSABREAsareasasrsesesasaram
अर्थ - जिन बिम्ब के दर्शन से निधत्त और निकाचित रूप भी मिथ्यात्वादि कर्म कलाप का क्षय देखा जाता है।
जिन बिम्ब भी पूजनीय है -
भगवती आराधना ग्रन्थ में बताया है__ जैसे अहंत आदि भव्यों को शुभोपयोग उत्पन्न करने में कारण हैं वैसे उनके प्रतिबिम्ब भी शुभोपयोग उत्पन्न करते हैं। जैसे - अपने पुत्र के समान ही दूसरे का सुन्दर पुत्र देखने से अपने पुत्र की याद आती है। इसी प्रकार अर्हन्त आदि के प्रतिबिम्ब देखने से अहंदादि के गुणों का स्मरण हो जाता है। इस स्मरण से नवीन अशुभ कर्म का संवरण होता है। इसलिए समस्त इष्ट पुरूषार्थ की सिद्धि करने में जिनबिम्ब भी हेतु है अतः उनकी उपासना अवश्य करनी चाहिए ।। ३ ।। • साधु सेवा
विषय चाह जिस चित्त नहिं, नहिं परिग्रह साथ।
ज्ञानी ध्यानी साधु को, सेवत बुध नमि माथ ।। ४ ।।
अर्थ - जिनका चित्त (मन) पंचेन्द्रिय विषय भोगों की चाह से रहित है। जिनके पास २४ प्रकार के परिग्रह नहीं होते हैं, जो ज्ञानी, ध्यानी और तपस्वी हैं, बुधजन जिनके चरणों की सेवा करते हैं ऐसे साधुओं को - आचार्य, उपाध्याय
और साधु इन तीन परमेष्ठियों को मस्तक झुका कर वन्दन करता हूँ, उनकी सेवा करता हूँ। साधु का लक्षण बताते हुए रत्नकरण्ड श्रावकाचार में आचार्य कहते हैं -
"विषयाशावशातीतो निरारम्भोऽपरिग्रहः । ज्ञानध्यानतपोरक्तस्तपस्वी सः प्रशस्यते ॥ १० ॥ ३. प्रमदाभाषते काम द्वेषमायुध संग्रहः।
अर्थ - राग के मद से परिपूर्ण स्त्री काम भाव को प्रगट करती है। आयुध का संग्रह शत्रु पक्ष के प्रति उत्साहित करता हुआ द्वेष को प्रगट करता है ।। ३ ।। WARRAKASARANASANAVARLANARAKARR AKECARA
धर्मानन्द श्राधकाधार--१५२