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SALACASASASASALAMEL
ASAEREASASAGAGASANI
ASALA
अर्थ - उद्यान में क्रीड़ा करते हुए प्यास से पीड़ित होकर यादवों ने पुरानी शराब को "यह जल है" ऐसा जानकर पी लिया और उसी से वे नष्ट हो गये । ३. मंसासणेण गिद्धो वगरक्खो एग चक्कणयरम्मि ।
रज्जाओ पब्भट्ठो अयसेण मुओ गओ णरयं ।। १२७ ।। वसु. श्री. ।। अर्थ - एक चक्र नामक नगर में मांस खाने में गृद्ध (लोलुपी) बक राक्षस (यह पहले राजा था) राज्य पद से भ्रष्ट हुआ, अपयश से मरा और नरक गया। ४. सव्वत्थ शिवुणबुद्धी वेसासंगेण चारूदत्तो वि ।
खइऊण घणं पत्तो दुक्खं, परदेशगमणं च ।। १२८ ॥ वसु. श्रा । अर्थ सर्व विषयों में निपुण बुद्धि चारूदत्त ने भी वेश्या के संग से धन को खोकर दुःख पाया और परेदश में जाना पड़ा।
५. होऊण चक्कवट्टी चउदहरयणाहिओ वि संपतो ।
मरिऊण बंभदत्तो णिरयं पारद्धिरमणेण ।। १२९ ॥ वसु. श्रा ॥
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अर्थ - चौदह रत्नों का स्वामी चक्रवर्ती होकर भी ब्रह्मदत्त शिकार खेलने से मरकर नरक में गया।
६. णासावहार दोसेण दंडणं पाविऊण सिरिभूई ।
मरिऊण अट्टझाणेण हिंडिओ दीह संसारे ॥
अर्थ - धरोहर को अपहरण करने के दोष से दण्ड पाकर श्रीभूमि आर्तध्यान से मरकर संसार में दीर्घकाल तक रुलता फिरा ।
७. होऊण खयरणाहो वियक्खणो अद्धचक्कवट्टी वि
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मरिण गओ णरयं परिस्थिहरणेण लंकेसो ॥ १३१ ॥ वसु श्रा । अर्थ- विचक्षण, अर्धचक्रवर्ती और विद्याधरों का स्वामी होकर भी लंका का स्वामी रावण पर स्त्री हरण के कारण मरकर नरक में गया।
इस प्रकार एक-एक व्यसन करने से दुःख हुआ फिर जो सातों व्यसनों को सेवन करके दुःख की वृद्धि स्वाभाविक ही है। उसके दुःख का क्या वर्णन किया जा सकता है || २५ ॥
KAETEREZNAKAKAKALACASACAVACZCABASABASABAYACAKALABA धर्मानन्द श्राचकाचार ~१८४
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