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XARXARAK251 atasata CALARASINAKABABALARREAREA • शिकार में दोष -
बेकसूर असहाय जे, पशु-पक्षी जल जीव । उन्हें शिकारी मारकर, हिंसक बने अतीव ॥ ३० ॥ और भी - कारूय किराय चंडाल डोंब पारसियाण मुच्छि8 ।
सो भक्खेड़ जो वसइ एयरत्तिं पि वेस्साए ।। ८८ ॥ वसु. श्रा. ।। अर्थ - जो कोई भी मनुष्य एक रात भी वेश्या के साथ निवास करता है वह कारू लुहार, चमार, किरात (भील), चांडाल, डोंब (भंगी) और पारसी आदि नीच लोगो का झूठा खाता है क्योंकि वेश्या इन सभी नीच लोगों के साथ समागम करती है। और भी वेश्या में दोष है -
याः खादन्ति पलं, पिबंति च सुरां, जल्पन्ति मिथ्यावचः ।
शीलं हरन्ति द्रविणार्थमेव विदधति च प्रतिष्ठा क्षति ॥ अर्थ - जो मांस खाती है, शराब पीती है, सदा मिथ्या वचन बोलती है। धन के लिए शील का अपहरण करती है, लोक प्रतिष्ठा को नष्ट करती है वह वेश्या है, ऐसा वेश्या का स्वरूप जानना । और भीश्लोक - रजक शिला सह सदृशीभिः, कुक्कुर समान चरिताभिः ।
गणिकाभिर्यदि संगकृतेन श्वभ्रे गच्छन्ति ते नराः॥ अर्थ - धोबी के शिला के समान, कुत्ते के सदृश पतित है चर्या जिसकी ऐसी वेश्याओं की संगति से मनुष्य नरक गति को प्राप्त होते हैं। ___ भावार्थ - पूर्वोक्त दोषों को जानकर विवेकी जन सप्त व्यसनों से दूर रहें यही सम्पूर्ण कथन का सार है। और भीश्लोक - बहनं जघनं यस्यानीचलोकमलाविलं।
गणिकां सेवमानस्य तां शौचं वद कीदृशं ।। __ अर्थ - नीच लोक जिसके जघन्य रन्ध्र स्थान का सेवन करते हैं - ऐसी वेश्या का सेवन भला, बताओ कि किस प्रकार शौच धर्म को चारित्र शुद्धि को टिकने देगा अर्थात् वेश्या सेवी का चारित्र नियम से नष्ट होना ही है ।। २९ ।। BARREAUCRACIUINDARRARASUNAKAUKANA RUA
धर्मानन्द श्रावकाचार १८८