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SAESARMEREKAREERSAREERSATISASREATREASUTrusiasa है। अतः सम्यग्दर्शनादि उत्तर गुणों का सर्व प्रकार घात करने वाली मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए । मदिराजीव से पतन की ओर ले जाती है ।। २८॥ • वेश्यागमन के दोष
दृष्टि पड़त चित को हरे, संगम बल हर लेय। धर्म रूप धन भी हटे, वेश्या अवगुण खेत ॥ २९ ॥
अर्थ - दृष्टिपात करते ही जो पुरूष का मन हर लेती है। संगम किया तो उसका बल हरण होता है, शक्ति क्षीण होती है साथ ही बाह्य धन के साथ धर्म जैसी अमूल्य संपत्ति का भी अपहरण हो जाता है अतः वेश्यागमन सभी अवगुणों की उत्पत्ति करने वाला खेत है-आधार है। दुर्गुणों को पैदा करने वाली उपजाऊ भूमि है। जो दोष मद्य मांसादि में हैं वे सब दोष एक साथ वेश्यासेवन में हैं।
वसुनन्दी श्रावकाचार में बताया है -"जो मनुष्य एक रात भी वेश्या के साथ निवास करता है वह लुहार, चमार, भील, चांडाल, भंगी, पारसी आदि नीच लोगों का झूठा खाता है क्योंकि वेश्या इन सभी नीच लोगों के साथ समागम करती है।" ॥ २९ ॥ टीका
२९. दर्शनात् क्षरते वित्तं, स्पर्शनात् क्षरते बल् ।
संगमात् क्षरते वीर्य, वेश्या प्रत्यक्ष राक्षसी ॥ अर्थ - जिसको देखने से धन का क्षरण नाश होता है, स्पर्शन से आत्म बल धृति बल टूटता है, संगम से वीर्य का क्षरण होता है ऐसी वैश्या प्रत्यक्ष राक्षसी ही है।
और भी - या परं हृदये धत्ते, परेण सह भाषते । परं निषेवते वेश्या परमाह्लादयते दृशा॥
अर्थ - जो पर पुरूष को हृदय में धारण करती है, पर के साथ भाषण करती है, पर का सेवन करती है तथा उससे परम आह्लाद को वह निरन्तर प्राप्त करती है उसे वेश्या का लक्षण जानना। UIREMIESEASRESENRORSaesaausesxeMKARMATRADERSURESREMus
धमानन्द श्रायकाचार-~१८७