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xxsasaramaskETRIESamasatarasaasBASUTRAEKERBA ___ अर्थ - पाक्षिक श्रावक सम्यग्दर्शन के जो २५ दोष हैं उनमें तथा अणुव्रत आदि बारह व्रतों में कभी कदाचित् अतिचार लग जाय तो प्रायश्चित्त लेकर अपनी शुद्धि कर लेता है। पहली प्रतिमा धारी सम्यादृष्टि जीव इन दोनों अर्थात् सम्यग्दर्शन के २५ दोष में तथा अणुव्रतादि बारह व्रतों का निरतिचार पूर्वक पालन करते हैं। यही पहली प्रतिमा और पाक्षिक श्रावक में अन्तर है।
विवेकवान् विरक्तचित्त अणुव्रती गृहस्थ को श्रावक कहते हैं। श्रावक के तीन प्रकार हैं - १. पाक्षिक प्रका, २. छिपक, ३. साधक प्रावक
१. पाक्षिक श्रावक - जिनेन्द्र भगवान की वाणी पर श्रद्धा करता हुआ पाक्षिक श्रावक सबसे पहले तीन मकार अर्थात् - मद्य, मांस, मधु एवं पांच उदम्बर फलों का त्याग करता है। अपनी शक्ति और सामर्थ्य को नहीं छिपाता हुआ पाप के डर से स्थूल हिंसा, स्थूल झूठ, स्थूल चोरी, स्थूल कुशील और स्थूल परिग्रह के त्याग का अभ्यास करता है, देवपूजा, गुरु उपासना आदि षड् आवश्यक को शक्त्यानुसार नित्य करता है, पर्यों के दिनों में प्रोषधोपवास को करता है तथा व्रत खण्डित होने पर प्रायश्चित्त ग्रहण करता है, आरंभादि में संकल्पी आदि हिंसा नहीं करता इस प्रकार उत्तरोत्तर चारित्र में वृद्धि करता हुआ एक दिन मुनि धर्म पर आरूढ़ होता है।
२. नैष्ठिक श्रावक - देश संयम का घात करने वाली कषायों के क्षयोपशम की क्रमशः वृद्धि के वश से श्रावक के दर्शनादि ग्यारह संयम स्थानों के वशीभूत और उत्तम लेश्या वाला जीव नैष्ठिक श्रावक कहलाता है।
३. साधक श्रावक - जो शावक आनन्दित होता हुआ जीवन के अन्त में अर्थात् मृत्यु समय शरीर, भोजन और मन, वचन, काय के व्यापार के त्याग से पवित्र ध्यान के द्वारा आत्मा की शुद्धि की साधना करता है वह साधक श्रावक कहलाता है।
वसुनन्दि श्रावकाचार में दर्शन प्रतिमा का लक्षण इस प्रकार बतलाया है - MASAHARASATREASKERSATISASTERSASARAMATKasanxsaram
धर्मानन्द प्रावकाचार -२०२