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HESAIRassasRSARRESTERSASURRRRRRENSUSaraszeERBARUNA संयमी पुरूषों का शयन आसन होना विविक्त शय्यासन तप है। इससे अनेक लाभ हैं। ब्रह्मचर्य निर्बाध पलता है, स्वाध्याय, ध्यानादि में भी बाधा नहीं आती है।
६. कायस्लेश - लिग प्रमाद के वीतराग भाव से शारीरिक कष्ट सहन करना घोर तपश्चरण द्वारा शरीर को खेदमय करना कायक्लेश तप है।
गृहस्थ भी यथाशक्ति उक्त प्रकार के तप का एक देश अभ्यास करते हैं प्रथमानुयोग में - सुदर्शन सेठ एवं राजकुमार वारिषेण की कथा इसका श्रेष्ठ उदाहरण है।
अन्तरग तप- जो तप बाह्य द्रव्य की अपेक्षा नहीं रखता तथा इन्द्रियों से प्रत्यक्ष दिखता नहीं ऐसे प्रायश्चित्त आदि परिणाम विशेष को अन्तरङ्ग तप कहते हैं।
१. प्रायश्चित्त - प्रायश्चित्त में दो शब्दों का योग है प्रायः + चित्त। प्रायः = प्राचुर्येण निर्विकारं चित्तं प्रायश्चित्तम्" प्रमाद वश व्रत में लगे हुए दोषों को हटाना प्रायश्चित्त है। और भी - व्रत, संयम, समिति शील रूप परिणाम तथा इन्द्रियों के निग्रह रूप भाव को भी जिनागम में प्रायश्चित्त बताया है।
२. विनय - जो रत्नत्रय की प्राप्ति कराने वाले पूज्य साधन हैं, रत्नत्रय धारी पूज्य पुरुष हैं उन सबमें आदर बुद्धि रखना उनकी भक्ति करना विनय है। “कषायेन्द्रिय विनयनं विनयः" कषाय और इन्द्रियों का दमन करना भी विनय है।
भगवती आराधना ग्रन्थ के अनुसार - “विलयं नयति कर्म मलं इति विनयः।" जिन भावों से एवं क्रियाओं से कर्ममल का नाश हो उसे विनय कहते हैं।
सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थानुसार “पूज्येषु आदर: विनयः" पूज्य पुरूषों में आदर भाव का होना विनय है। विनय के स्वरूप को समझकर उसे धारण करना परम कर्तव्य है। 365 SAHAUAHASAGAWA na UKURANAKARARAAN SABANATA
धम:मन्द श्रावकाचार-१५९