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• छने पानी से लाभ -
जल को गाढ़े वस्त्र से बर्तन में ले छान ।
पियते रोग न हो सके, जीव दया भी जान ॥ २२ ॥
अर्थ - बर्तन में गाढ़े वस्त्र को लगाकर पानी छानकर जो जल को पीता है उसको तन्निमित्तक रोग नहीं होते साथ ही जीव दया धर्म का पालन भी होता
है ॥ २२ ॥
• इसकी सम्मति
नयन देखि भू पर धरें, पानी पीवे छान ।
सच बोले मन शुद्ध रखे, मनु भी करत बखान ॥ २३ ॥ पानी अर्थ - चार हाथ भूमि देखकर ईर्यापथ समिति से गमन करना, छानकर पीना, असत्य भाषण नहीं करना, मन शुद्ध रखना ये गुण जिसमें भी हो मनु भी उसकी स्तुति करते हैं। कुलकरों ने भी उसकी स्तुति की है ऐसा अभिप्राय है ॥ २३ ॥
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अर्थ - कपड़े के मध्य में संचित जीव राशि को उसी जलाशय के मध्य पहुँचाना चाहिए इस प्रकार से पानी छानकर पीने वाला परमगति को मोक्ष स्थान को निकट काल में प्राप्त कर लेता है।
श्लोक - मुहूर्त्तं गालितं तोयं प्रासुकं प्रहर द्वयं । उष्णोदकमहोरात्रं पश्चात् सम्मूर्च्छनं भवेत् ॥
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अर्थ - छना हुआ जल ४८ मिनिट १ मुहूर्त तक, प्रासुक किया जल २ प्रहर अर्थात् ६ घंटे तक और गर्म किया गया जल २४ घंटे तक शुद्ध माना गया है। उसके बाद उसमें सम्मूर्च्छन जन्म वाले सूक्ष्म जीव पैदा हो जाते हैं ॥ २१ ॥
२३. दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं पिवेद 1
सत्यपूतं वदेद्वाचं, मनः पूतं समाचरेत् ॥
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धर्मानन्द श्रावकाचार १८०
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