________________
SarsasurasREAurasiasasasarURUSeasansasasurgesasara
' छह महीने उपवास फल, पावत वह बड़ भाग ॥ १५ ॥
अर्थ .. मोनत्रिचोकारो 3.ई.५ गैस ग्रहण का त्यागी है उसको एक वर्ष में६ महीने उपवास का फल प्राप्त होता है। सरलता पूर्वक उपवास के फल की प्राप्ति का जैसा सहज उपाय जैन सिद्धान्त में है वैसा अन्यत्र नहीं ॥ १५ ॥
१५. (क) रात्री मुंजानानां यस्मादनिवारिता भवति हिंसा ।
हिंसाविरतैस्तस्मात् त्यक्तव्या रात्रिभुक्तिरपि ॥ १२९ ॥ पु. ।। अर्थ - क्योंकि रात्रि में भोजन करने वालों के हिंसा अनिवारित होती है इसलिए हिंसा के त्यागियों के द्वारा रात्रि में भोजन करना भी छोड़ना चाहिए। और भी
मक्षिका वमनाय स्यात्स्वरभंगाय मूर्द्वजः।
यूका जलोदरेविष्टिः कुष्टाय गृहगोधिका ।। अर्थ - रात्रि भोजन से हानि - यदि भोजन के साथ मक्खी पेट में चली गई तो वमन होने लगता है। मूर्धाआदि से उत्पन्न स्वर -आवाज विकृत हो जाती है, स्वर टूटता है। जुआँ यदि भोजन के साथ खाने में आ गया तो जलोदरादि रोगों से वह ग्रस्त हो जाता है। छिपकली गिर गई और भोजन पेट में पहुंच गया तो कुष्टरोग हो जाता है। और भी -
न श्राद्धं दैवतं कर्मस्नानं दानं न चाहुतिः ।
जायते यत्र किं तत्र नराणां भोक्तुमर्हति ।। अर्थ - हिन्दू धर्म में भी देवता को श्राद्ध देना, विशेष शुद्धि हेतु स्नान क्रिया, धर्म हेतु दान वा होम आदि कार्यों का भी अब रात्रि में निषेध है फिर भोजन करना योग्य है क्या ? अर्थात् नहीं। रात्रि में भोजन किसी भी अपेक्षा उचित नहीं है।
(ख) मद्य मांसाशनं रात्रौ भोजनं कंदभक्षणम् | __ ये कुर्वन्ति वृथास्तेषां तीर्थयात्राजपस्तपः ॥
अर्थ - मध मांस का सेवन, रात्रि भोजन, कंदभक्षणादि जो करते हैं उनकी तीर्थयात्रा एवं जप तप सभी विफल होते हैं। और भी - अस्तंगते दिवानाथे आपोरूधिरमुच्यते ।
अन्नं मासं समं प्रोक्तं मार्कण्डेय महर्षिणा ।।... ANALIZUAARRERSAHARASHERRARAKTERLUKAKURASA
धर्मानन्द श्रावकाचार-१७०