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xuradaki aradaku takusana NATURA ...() आप्तपंचनुतिर्जीवदया सलिलगालनं ।
त्रिमद्यादिनिशाहारोदुम्बराणां च वर्जनं ।। अर्थ - पंच परमेष्ठी को नमस्कार करना, जीव दया पालन करना, पानी छानकर पीना, मद्य को त्याग, मांस का त्याग, मधु का त्याग, रात्रि भोजन त्याग, उदम्बर फल का त्याग । इस प्रकार ये आठ मूलगुण किन्ही आचार्यों ने प्रसाये हैं जो आर्षग्रणीत आगम के अनुकूल है। २. यावज्जीवमिति त्यक्त्वा महापापानि शुद्धधीः।
जिनधर्मश्रुतेर्योग्यः स्यात्कृतोपनयो द्विजः ।। अर्थ - जो निर्मल बुद्धि वाला जीवन पर्यन्त महापाप-प्रसादि जीवों के घात का त्याग कर चुका है जिनागम के अनुकूल चर्या वाला उपनयन संस्कार से युक्त व्यक्ति द्विज - धार्मिक संस्कारों से युक्त व्रती श्रावक कहलाता है। उनके योग्य कुल का कथन
ब्राह्मणाः क्षत्रियावैश्यास्त्रयोवर्णा द्विजादयः । द्वाभ्यां जन्म संस्काराभ्यां जायते उत्पद्यते इति द्विजस्य व्युत्पत्तिः । ____ अर्थ - ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ये तीन वर्ण शुद्ध कुल जाति वाले होने से द्विज संज्ञा भी इन्हें प्राप्त है। विशेष - उत्तम वंश में जन्म होना - यह एक सजाति हुई पुनः व्रतों के संस्कार से संस्कारित होना - यह द्विीय जन्म माना जाने से उस भव्य की द्विज यह संज्ञा अन्वर्थ हो जाती है। जिस प्रकार उत्तम खान में उत्पन्न हुआ रत्न संस्कार के योग से उत्कर्ष को प्राप्त होता है। उसी प्रकार क्रियाओं और मन्त्रों से सुसंस्कार को प्राप्त हुआ आत्मा भी अत्यन्त उत्कर्ष को प्राप्त हो जाता है।
जिनमें शुक्ल ध्यान के लिये कारणभूत-ऐसे जाति गोत्र आदि कर्म पाये जाते है वे ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ऐसे तीन वर्ण हैं। उनसे अतिरिक्त शेष शूद्र कहे जाते हैं। विदेह क्षेत्र में मोक्ष जाने योग्य जाति का कभी विच्छेद नहीं होता क्योंकि वहाँ उस जाति में कारणभूत नामकर्म और गोत्रकर्म सहित जीवों की निरन्तर उत्पत्ति होती रहती है। परन्तु भरतक्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र में चतुर्थ काल में ही जाति की परम्परा चलती है. अन्य काल में नहीं।
प्रकरणगत नोट - पिता के वंश की जो शुद्धि वह कुल है। माता के वंश की जो शुद्धि वह जाति है। माता-पिता दोनों के कुल की शुद्धि-वह सज्जाति है। दिगम्बरी दीक्षा तो सज्जाति के बिना संभवति ही नहीं ॥९॥ Kiaslelisasex sanelksiksaksaexsusarmikSAATUSuREAK
धमन्दि श्रावकाचार -१६४