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GRÄNUIKIU ATALAKALARASINASASALAMAT SABABase ___ अर्थ - अनशनादि ६ बाह्य तप तथा प्रायश्चित्त आदि ६ अन्तरङ्ग तप को भी यथाशक्ति करने से कर्मों का क्षय होता है और आत्म शुद्धि की अतुल वृद्धि होती है।
६ बाह्य तप निम्नलिखित हैं - १.अनशन, २. ऊनोदर, ३. वृत्तिपरिसंख्यान, ४. रस परित्याग, ५. विविक्त शय्यासन, ६, कायक्लेश। . १. अनशन - संयम की वृद्धि के लिये, शरीर संबंधी अनुराग को हटाने
के लिये, कर्मनाश के लिये तथा ध्यानादि की सिद्धि के लिये चारों प्रकार के आहार का त्याग करना अनशन तप है।
२. ऊनोदर .. उन अर्थ है कम, जितनी आवश्यकता है उसमें भी कुछ कम प्रमाण आहार ग्रहण करना ऊनोदर है। ऊनोदर भी तप है। क्योंकि बिना प्रमाद के संयम का पालन हो, निद्रा अधिक न आवे, भोगों में लालसा न रहे, संतोष बना रहे स्वाध्याय काल में प्रमाद न सतावे - इत्यादि में ऊनोदर कारण बनता है।
३. वृत्ति परिसंख्यान - वृत्ति नाम भोजन संबंधी क्रिया का है। उसकी संख्या की नियति कर लेना अर्थात् विविध प्रकार का अवग्रह (नियम) लेकर चर्या को जानना वृत्ति परिसंख्यान तप कहलाता है। इससे आहार संज्ञा पर नियंत्रण होता है। इच्छा का निरोध होता है। अनुकूल प्रतिकूल आहार के प्रति राग-द्वेष का अभाव हो जाता है, सरस विरस आहार के प्रति आकर्षण विकर्षण नहीं रहता है। अमीर गरीब का भेदभाव नहीं रहता है।
४. रस परित्याग - घी, दूध, दही, नमक, तेल और शक्कर ये ६ रस हैं। यथाशक्ति एक दो या षट्रस का त्याग कर प्रासुक आहार विधिवत् ग्रहणकर रस परित्याग तप कहलाता है। रस परित्याग में समस्त आहार का त्याग नहीं होता किन्तु एक देश का त्याग होने से अवमौदर्य की भाँति यह भी तप है।
५. विविक्त शय्यासन - निर्जन, जन्तुओं की पीड़ा से रहित स्थान पर BASEREUSuvareaesaHRIMASASANamasawaSasaEARREREUSRER
धमिन्द श्रावकाचार-४१५८