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Samage &&&хатах&xaxaxaxaxaxХатууій लगता है, योग्य वस्तु को अयोग्य कहता है और अयोग्य को योग्य समझ कर सेवन करता है । मोह मिथ्यात्व भी भयंकर नशा उत्पादक है जिसका सेवन करने से मनुष्य पागल, उन्मत्त हो जाता है और अनन्त संसार वर्द्धक जिनधर्म, जिनागम, जिनप्रणीत तत्वों का विपरीत श्रद्धान कर लेता है। निज स्वरूप को विस्मृत कर पर रूप चेतन, अचेतन, मिश्र पदार्थों को अपना मान लेता है। इसी विपरीत परिगति का गप पिष्टमात्र है : शारीदि जल पदार्थों में स्वस्वरूप कल्पना करना ही मिथ्यात्व है ।। १० ।। • मिथ्यात्व के भेद--
पाँच भेद मिथ्यात्व के, प्रथम एकान्त वखान । संशय, विनय, अज्ञान पुनि पंचम विपरीत जान ।। ११ ।।
अर्थ - मिथ्यात्व के पाँच भेद हैं - १. एकान्त, २. संशय, ३. विनय, ४. अज्ञान, ५. विपरीत । अर्थात् इन पाँच प्रकार की मान्यताओं से तत्त्वादि श्रद्धान में विपरीतता उत्पन्न होती है यथा अनेकान्त धर्मात्मक वस्तु तत्त्व को एक तत्व को लेकर तद्रूप ही कहना जैसे पर्याय दृष्टि से क्षणिक पदार्थ स्वभाव को लेकर वस्तु क्षणिक ही है मानना आदि ।। ११ ।।
१०. मिच्छोदयेण मिच्छत्तममद्दहणं तु तच्च अत्थाणं ।
एयंत विपरीयं विणयं संसयिदमण्णाणं ।। अर्थ - दर्शनमोहनीय का भेद मिथ्यात्व है उसके उदय से होने वाला अश्रद्धान या विपरीत श्रद्धान मिथ्यात्व है। यह मिथ्यात्व घार प्रकार से परिणमित होता है अतः उसके चार भेद है - १. एकान्त, २. विपरीत. ३. विनय, ४. संशय ।
संस्कृत टीका में भी यही चार नाम मिलते हैं।
११. ऐकांतिकं सांसयिकं विपरीतं तथैव च । आज्ञानिकं च मिथ्यात्वं तथा वैनयिकं भवेत् ।
प्रत्येक का लक्षण आगे बताते हैं - MarwAATSAnsistanAmASARANASANGNANGrinik
गन्निनाद श्रबकाचार-८५३