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• समाधिस्थ गुरू हिंसा निषेध
समाधिस्थ गुरु हनन से, गुरु लहै वैकुंठ ।
पूर्व समय की उक्ति यह, बुधजन मिथ्या जान ॥ २४ ॥
अर्थ - नय प्रमाण से शोभित अनेकान्त जिनवाणी का जिनको समीचीन ज्ञान है वे बुध जन, गुरु हिंसा की बात दूर रहे उनके लिए पीड़ा कारक प्रसङ्ग बने वैसा कार्य कभी नहीं करते हैं।
कुछ विधर्मियों की मान्यता है कि समाधि से मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः यदि समाधि को प्राप्त गुरु का सिर काट दिया जायेगा तो वे मोक्ष को प्राप्त हो जायेंगे। इस प्रकार के मिथ्या विचार से अपने गुरु की हिंसा नहीं करनी चाहिए। गुरु हिंसा से बड़ा दुनियाँ में कोई भी पाप नहीं । यदि हम पाप और उसके फल से एक होना चाहते हैं तो गुरु के जान में धर्म मानना छोड़ दें ॥ २४ ॥
• आत्मघात निषेध -
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विशेष हेतु के होत भी, बुध न करत निज नाश | अग्न्यादिक अपघात से, निश्चय नरक निवास ॥ २५ ॥
.. है वह नियम से नरकादि को प्राप्त होकर अधिक दुःखी होता है और यहाँ सुखी अवस्था में मरता है वह नियम से स्वर्गादि में जाकर अधिक सुखी होता है अतः सुखी जीव को मार देना चाहिए ताकि वह बहुत समय तक परलोक में सुखी रहे। ऐसा कुतर्क देकर सुखी जीवों को नहीं मारना चाहिए ॥ २३ ॥
२४. उपलब्धिसुगतिसाधनसमाधिसारस्य भूयसोऽभ्यासात् ।
स्वगुरोः शिष्येण शिरो न कर्तनीयं सुधर्ममभिलषिता ॥ ८७ ॥ पुरुषार्थ. । भावार्थ - शास्त्रों में लिखा है कि समाधि से मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः यदि समाधि को प्राप्त गुरु का सिर काट दिया जाएगा तो वे मोक्ष को प्राप्त हो जायेंगे। इस प्रकार के मिथ्या विचार से अपने गुरु की हिंसा नहीं करनी चाहिए ॥ २४ ॥
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धर्मानन्द श्रावकाचार १४०