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SERECENTERNAMASTERERESASASReasaraNREarmacisesex के रहस्य को समझो और अपने समान अन्य जीवों के प्राण भी रक्षणीय हैं ऐसा जानकर उत्तम अहिंसा धर्म को स्वीकार करो।
भाई - जिनामा मे महाय कोक, भाव हिंसा द्रव्य हिंसा के फल को समझकर योग्य श्रद्धान कर अहिंसा धर्म ही परम धर्म है ऐसा जानकर सब 'जीवों का प्रयत्न पूर्वक रक्षण करना चाहिए ।। २८ ॥ विशेष -
अहिंसा तत्त्व के लखन की, यदि हो अधिकी चाह । देखो बैन सिद्धान्त को, संशय सब मिट जाय ।। २९ ॥
अर्थ - और भी विस्तार पूर्वक अहिंसा तत्त्व को जैन सिद्धान्त के आधार से समझ कर आत्म हित करने का प्रयास करना चाहिए । संशय तिमिर का मूल नाश जिनसे होता है वह जैन सिद्धान्त ही है। अतः इसका अध्ययन कर सब प्रकार के विभ्रमों को चित्त से निकालकर सच्चे धर्म की शरण स्वीकार करनी चाहिए ।। २९ ।। • तृतीय अध्याय का सारांश
इमि विधर्मी सद्धर्म में, हिंसा दई मिलाय। महावीर संक्षिप्त वह, कही सुअवसर पाय ।। ३० ॥ २९. को नाम विशति मोहं नयभाविशारदानुपास्य गुरून् ।
विदितजिनमतरहस्यः श्रयन्नहिंसां विशुद्धमतिः॥९० ।। पुरूषार्थ. ।। अर्थ - नय भनों के जानने में प्रवीण, गुरू की उपासना कर जिनमत के रहस्य को समझने वाला जो निर्मल बुद्धि का धारी है उनमें भला ऐसा कौन होगा? जो पूर्वोक्त मिथ्यामतों में मूढ़ता को प्राप्त हो ? कोई नहीं। विवेकी जन मिथ्यामत के गहन चक्र से सदा दूर रहते हैं। समीचीन अहिंसा धर्म को जानना है तो वह जानना नयभङ्ग विशारद वीतरागी गुरूओं की देशना से ही संभव है अन्य प्रकार नहीं। RAMATRENAMUSERasasax&KATREMIRRRRRRRRRRRRRREasAR
धमान श्रायकाचार-१४४
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