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ACASAESARICARADACARRASASKATASAUSKRAVARASA •कषाय का लक्षण एवं भेद -
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अहिंसा गुण की सुरक्षा एवं वृद्धि के लिये बाधक कारणों को सर्वप्रथम हटाना चाहिए उन बाधक कारणों में मुख्य कारण कषाय है अतः सन्दर्भ प्राप्त कषाय का स्वरूप बताते हुए आचार्य लिखते हैं -
आतम शुद्ध परिणाम के हिंसन हेतु कषाय। क्रोधादि पच्चीसवें, जग जीवन दुःखदाय ॥२॥ जिस प्रकार स्वभाव से शीतलता स्वच्छता मधुरता आदि गुणों से युक्त जल कीचड़ आदि के संयोग से मलिन एवं विकारयुक्त हो जाता है उसी प्रकार कषाय रूपी पंक के संयोग से ज्ञान, दर्शन, सुख स्वभावी आत्मा भी हिंसात्मक प्रवृत्ति करने लग जाता है। क्रोधादि कषाय से संपृक्त आत्मा के ज्ञान, दर्शन, चाम्लि डी डी गुण विकत हो जाते हैं। ऐसी दुखदायी कषायों से बचने के लिये भेद प्रभेद सहित कषायों को समझना भी आवश्यक है। क्रोधादि कषायों के २५ भेद हैं और प्रत्येक कषाय उस जीव को पतन और दुःख की ओर ले जाती है। २५ भेद आगमानुसार इस प्रकार हैं
(क) अनन्तानुबन्धी गत - १. क्रोध, २. मान, ३. माया, ४. लोभ (ख) अप्रत्याख्यानगत- ५. क्रोध, ६. मान, ७. माया, ८. लोभ (ग)
"प्रमत्त योगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा" जहाँ प्रमाद है वह अवश्य हिंसा है। झूठ, चोरी, कुशील आदि सब प्रमत्त योग के उदाहरण हैं - यह बात शिष्य को पता चले इसलिये भेद रूप कथन कर पाँच पाप बताये हैं।
अप्रादुर्भावः खलु रागादीनां भवत्यहिंसेति। तेषामेवोत्पत्तिहिंसेति जिनागमस्य संक्षेपः॥ ४४ । पु. सि.॥
अर्थ - वास्तव में रागादि भावों का प्रगट न होना यह अहिंसा है और उन्हीं राग आदि भावों की उत्पत्ति होना हिंसा है। यही जैन सिद्धान्त का संक्षिप्त रहस्य है। KANARSALAKALABALARARAVASÁSEKUASAAAAAAAAAA
* धमणिन्द श्राधकाचार-११४