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BansaARRESUSSREERassasaERRRRRESTERSasasarawasana भी अहिंसा रूप फल को देती है किन्तु अहिंसा का फल हिंसा स्वरूप और हिंसा का फल अहिंसा स्वरूप कैसे संभवित है ? समाधान - यहाँ भी परिणामों की मुख्यतानुसार कथन जानना । ____ जो मायावी है उसका ऐसा स्वभाव होता है कि अन्तरङ्ग में हिंसा के भाव पनपते रहते हैं पर ऊपर से ऐसी क्रिया करता है जो अहिंसा का प्रतीक हो ऐसा व्यक्ति बाहर से सद्व्य वहार करते हुए भी अन्दर में दुष्ट परिणाम होने से हिंसा का ही फल पाता है। पर कोई साधु संत अन्तरङ्ग में जीव रक्षा का भाव रखकर गमन कर रहे हैं पर अचानक कोई छोटा जीव पैरों के नीचे आ गया और दबकर मर भी गया तो बाहर में द्रव्य हिंसा होते हुए भी अन्दर में कोमल परिणाम होने से उन्हें अहिंसा का ही फल मिलता है, हिंसा का बिल्कुल नहीं। यही अनेकान्त है विचारों का समीचीन सामञ्जस्य है॥ १४ ॥ • आगे इसी विषय को दृष्टान्त से पुष्ट करते हैं -
अहिंसाभाव प्रमादि को, हिंसा का फल देय।
१४. हिंसाफलमपरस्य तु ददात्यहिंसा तु परिणामे । ___ इतरस्य पुनर्हिसा दिशत्यहिंसाफलं नान्यत् ॥ ५७ ॥ पुरुषा. ।।
अर्थ - किसी की अहिंसा - फल काल में हिंसा रूप फल देकर जाती है। दूसरे किसी की हिंसा - अहिंसामय फल प्रदान करती है।
भावार्थ - १. मायाचारी व्यक्ति का एक ऐसा स्वभाव है कि अन्दर में तो दुष्टता रहती है, दूसरे के मारने का भाव रहता है - बाहर में वह शरीर से चेष्टा यदि उसके बचाने की करता है तो ऐसे जीव की वह शरीर चेष्टा समस्त बाह्य क्रियायें दिखावा मात्र है उसको हिंसा का ही फल मिलता है।
२. कोई डॉक्टर रोगी को बचाने की भावना से ऑपरेशन कर रहा है पर रोगी मर जाता है तो डॉक्टर से द्रव्य हिंसा हुई पर भाव सही थे अतः हिंसा रूप फल का भागी वह नहीं बनता है। KBCsusarmeasASSAGREAsuagesansarszesrasasregaSansa
धधर्मानन्द श्रावकाचार-१३०