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aanasaesaRaTRERNSREASTERNATURERSESRENDERKesarsarasana • हिंसक जीवों की हिंसा का निषेध
हिंसक जीव के घात में जीव दया बहू होय । हिंसक का भी बधक वह, क्या हिंसक नहीं होय ॥ २१॥
अर्थ - कुछ लोगों का ऐसा कहना है कि बहुत जीवों के धातक सिंह आदि जीव यदि जीते रहेगें तो वे अनेक जीवों को मारकर खायेगे और अधिक पाप उपार्जन करेंगे अतः बहुत जीवों पर दया भावना करके हिंसक जीव को मार देना चाहिए। उनको मारने से बहुत जीवों का रक्षण होता है, अतः क्रूर जीव को मारने में पाप नहीं धर्म है। इस मिथ्या मत का खण्डन करते हुए आचार्य कहते हैं प्रत्येक प्राणी पूर्व पर अपेक्षा हिंस्य भी बनता है और हिंसक भी। अतः आप किन-किन को मारोगे? और किनको बचाओगे ? कारण पाकर हिंसक जीव भी हिंसा छोड़ देता है। ___ तपस्वी मुनिराजों की शान्त छवि को देखकर क्रूर जीव भी क्रूरता छोड़ देते हैं हम उस परम अहिंसा भाव को अपनाये जिससे प्रभावित होकर हिंसक जीव हिंसा करना छोड़ दे । यदि उनको मारेगें तो वैर भाव पूर्वक मरण कर अगले भव में वे आपको मारेंगे, वैरभाव की श्रृंखला और सुदृढ़ होती चली जायेगी । अतः किसी भी जीव को संकल्प पूर्वक मारना पाप है, धर्म नहीं। हिंसक को मारते समय भी हिंसा भाव किं वा उग्र कषाय होती है अतः उससे पाप का फल ही प्राप्त होता है। उसमें लेश मात्र भी धर्म नहीं है ॥२१॥
...भावार्थ - स्मृति आदि वेद को मानने वालों की ऐसी मिथ्या मान्यता है कि एक-एक गेहूँ के दाने में एक-एक जीव होता है उसको खाने से वे मर जाते हैं इससे बहुत बड़ा पाप होता है अतः इतने जीवों का घात करने की बजाय एक बड़े भैसे इत्यादि का वध करके खा लिया जाय तो वह अच्छा है। सो ऐसी मूर्खता की बातों में आकर कभी भी जीवों को नहीं मारना चाहिए ॥ २० ॥ URISESAMRIERRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRREasanasana
धमिव श्रावकाचार १३७