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SERIKARRETERA ARMOURBABĀKUASARUMATATANDANG
यज्ञार्थ हिंसा निषेध
यज्ञ हेतु अश्वादि बलि, हिंसा नहि कहलात। यह भी वाक्य न युक्ति युत, सोचो तजि पक्षपात ॥१९॥
अर्थ – धार्मिक यज्ञ में घोड़ा, बकरा आदि की बलि चढ़ाना हिंसा नहीं ऐसा धर्म विरूद्ध कथन युक्ति युक्त न होने से सत्पुरुषों द्वारा मान्य नहीं । मोह रूपी पिशाच से ग्रस्त होने से उक्त कथन पक्षपात रूप है एक प्रकार ही हठ ग्राहिता है। हठाग्रह को छोड़कर उन्हें धर्म के रहस्य को समझना चाहिये।
भावार्थ - कुछ मत मतान्तर वाले यज्ञ में हुई हिंसा में धर्म मानते हैं। उनका कहना है कि यज्ञ में होमा गया जीव सीधे स्वर्ग जाता है। यज्ञ करना देवताओं की आज्ञा है अतः यज्ञ में की गई हिंसा, हिंसा नहीं है, ऐसे मूर्ख दुर्बुद्धिजनों के चक्कर में पड़कर कभी भी जीवों का वध नहीं करना चाहिए। सही धर्म पर दृष्टि रखने का हम प्रयास करें ऐसा संकेत आचार्य श्री ने उक्त दोहे में किया है ।। १९॥ १९. यूयं छित्त्वा-पशून हत्वा कृत्वा रूधिरकर्दमं ।
यद्येवं गम्यते स्वर्ग नरके केन गम्यते ॥ अर्थ - यदि पशु वध करने से पशुओं के रक्त का कीचड़ बनाने से स्वर्ग मिलता है तो फिर नरक गमन के प्रति कारणभूत अन्य कौन सा पुरूषार्थ विशेष शेष रहा?
राजे ब्राह्मणाय अतिघये वा महोक्षे वा महायज्ञ वा पचेत्परपक्ष वालों का कथन ऐसा है - राजा, ब्राह्मण और अतिथि के लिए हष्ट पुष्ट महान् काय बैल का महायज्ञ में होम करना चाहिए।
महाजवं वा पचेदेवमातिथ्यं कुर्वतीति ।। ४ ।। महाजवं का अर्थ है बारह सिंगा हरिण - उसको पकाकर भोजन बनाकर अतिथि सत्कार करें इत्यादि क्रूर हिंसा का पोषण करने वाले ऐसे वेद वाक्यों (स्मृत ग्रन्थ) का खण्डन करते हुए आचार्य आगे लिखते हैं।॥ १९ YARANANLOUBTRAUKA ANANAWANAN KARAOKE
हार्मानन्द श्रावकाचार-१३५