________________
ZSALACAER
जो वेदा जाय उसे वेद कहते हैं उसका दूसरा नाम लिंग है ।
NANINING
CANGCHUASLUZBABAER
अथवा आत्म प्रवृत्तेः संमोहोत्पादो वेद: और भी " आत्म प्रवृत्तेमैथुनसंमोहोत्पादी वेदः ।
ऐसा वेद का लक्षण धवला पुस्तक - १ में मिलता है !
आत्मा की चैतन्य रूप पर्याय में मैथुन रूप चित्र विक्षेप के उत्पन्न होने को वेद कहते हैं । यह लक्षण भाव वेद की अपेक्षा से है। वेद के २ भेद हैं - १. भाव वेद, २. द्रव्य वेद । मोहनीय कर्म के भेद नोकषाय के उदय से जो स्थिति प्राप्त होती है वह भाव वेद है तथा जो योनि मोहनादि नामकर्म के उदय से रचा जाता है वह द्रव्यलिंग है। भावलिंग आत्म परिणाम रूप है। वह स्त्री पुरूष व नपुंसक इन तीनों में परस्पर एक दूसरे की अभिलाषा लक्षण वाला होता है । वेदों का निरुक्ति अर्थ, व्युत्पत्ति अर्थ इस प्रकार भी मिलता है
-
पुरूषवेद पुरूष शब्द की रचना में जो वर्ण अक्षर हैं वे उत्तम अर्थ को धारण करने वाले हैं जैसा कि गोम्मटसार जीवकाण्ड में बताया है"पुरुगुणभोगे सेदे करेदि लोयम्मि पुरुगुणं कम्मं ।
पुरुउत्तमो य जम्हा, तम्हा सो वण्णिओ पुरिसो ॥ गा. २७३ ॥
अर्थ- जो सम्यग्दर्शनादि उत्कृष्ट गुणों का स्वामी हो जो लोक में उत्कृष्ट गुणयुक्त कर्म को करे यद्वा जो स्वयं उत्तम हो उसको पुरूष कहते हैं इसी प्रकार स्त्रीवेद में स्त्री शब्द का निरुक्ति अर्थ इस प्रकार है -
-
"छादयदि सयं दोसे णयदो छाददि परं वि दोसेण ।
छादणसीला जम्हा तम्हा सा वण्णिया इत्थी ॥ २७४ ॥ मो. जी. 12
अर्थ - जो मिथ्यादर्शन अज्ञान, असंयम आदि दोषों से अपने को आच्छादित करे और मृदुभाषण, तिरछी चितवन आदि व्यापार से जो दूसरे
पुरुषों को भी हिंसा अब्रह्म आदि दोषों से आच्छादित करे उसको आच्छादन
SALAKABALAGAGAGAGAGACACACZCACIBAEACACTCASABASABABA
धर्मानन्द श्रावकाचार ~१२२
454