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12 KIKUARIUMAS UNAUCANAKALABARABARARAQUARA स्वभाव युक्त होने से स्त्री कहते हैं। यह लक्षण सम्यक्त्वादि गुणों से भूषित नारियों के लिये नहीं है। यहाँ तो निरूक्ति द्वारा प्रकृति प्रत्यय से निष्पन्न अर्थ मात्र का बोध कराया है। नपुंसक वेद का निरुक्ति इस प्रकार है -
णेवस्थी व पुमं णउंसओ उदयलिंगवदिरित्तो।
इट्ठावग्गिसमाणगवेदणगरुओ कलुसचित्तो॥ अर्थ - जोन स्त्री हो और न पुरूष हो ऐसे दोनों ही लिंगों से रहित जीव को नपुंसक कहते हैं। इसके भट्ठा में पकती हुई ईंट के समान तीव्र कषाय होती है। अतएव इसका चित्त प्रतिसमय कलुषित रहता है ।। ५॥ • कषायों के साथ हिंसा की व्याप्ति है यह बताते हैं -
क्योंकि कषाय के हेतु ही शुद्ध स्व आतम घात। पीछे पर प्राण का, हो न हो पात ।। कषाय के उदय से रत्नत्रय रूप शुद्ध स्वभाव में स्थिति नहीं रह पाती है अस्तु निज स्वभाव का विघातक होने से कषाय भाव हिंसा ही है यह बात सिद्ध होती है। उदयागत वह कषाय पर के द्रव्यप्राण या भावप्राण के विधात में हेतु बने या न बनें पर स्व स्वभाव का घात नियम से होता है। कोई बार २ शत्रु को मारने का कठोर उद्यम करता है पर वह हर बार किसी न किसी निमित्त से बच जाता है उस समय शत्रु का घात रूप कार्य न होने पर भी हिंसा रूप परिणाम का सद्भाव होने से कषाय की अविनाभावी हिंसा भी अवश्य होती है।। ६ ।।
६. यस्मात्सकषायः सन् हन्त्यात्मा प्रथममात्मनात्मानम् । __ पश्चाज्जायेत न वा हिंसा प्राण्यन्तराणां तु । ४७ पुरुषा.।।
अर्थ - क्योंकि जीव कषाय भावों सहित होता हुआ पहले अपने ही द्वारा अपने को घातता है फिर पीछे से चाहे अन्य जीवों की हिंसा होवे अथवा न होवे वह तो उनके साता-असाता कर्म तथा आयु के आधीन है। WASNAIREMEDNESAMEENAasURATRUSANASAMIRKERestarsuse
धर्मनिषद श्रावकाचार-१२३