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SAATINKARA ANTANARARAMETRALAUREAZKARLEUNAKA • प्रमाद योग से हिंसा की अनिवार्यता
कषाय का काम कर्षण करना है, घात करना है अत: हिंसा में ही इसका समावेश जानना चाहिए। जैसा कि आगे बताया भी है
प्रमत्त कषाय के योग से, स्व पर प्राण दुःख पाय पीड़ा कारक हनन से, हिंसा सभी कहाय ।।३॥ प्रमाद का लक्षण- प्रमत्त का अर्थ है प्रमाद सहित होना। . प्रमाद किसे कहते हैं ?
सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ के अनुसार - "कुशलेषु अनादरः प्रमादः" अच्छे कार्यों के करने में आदर भाव नहीं होना प्रमाद है । इसी प्रकार अन्यत्र भी बताया है -
...प्रमाद का अर्थ - सर्वार्थ सिद्धि ग्रन्थ के अनुसार - “कषाय के भार की गुरूता से आलस्य होना प्रमाद है।" दूसरे शब्दों में - धार्मिक कार्यों में उत्साह कान होना भी प्रमाद है। प्रमाद पूर्वक किया गया प्राणघात राग-द्वेष की वृद्धि करता है। रत्नभय स्वभाव का विघातक है अतः हिंसा है।
__ “अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैर त्यागः1" जहाँ अहिंसाभाव है वहाँ नियम से वैरभाव भी नहीं होता। वैर त्यागः शब्द उपलक्षण स्वरूप हैं। अतः समस्त विकारभावों का त्याग अहिंसा है यह अर्थ निकलता है।
यत्खलुकषाय योगात् प्राणानां द्रव्यभावरूपाणां । व्यपरोपणस्य करणं सुनिश्चिता भवति सा हिंसा ॥ पु. श्लोक-४३ ॥ - अर्थ - वास्तव में कषाय के सम्बन्ध से द्रव्य और भाव रूप प्राणों के घात का करना है वह अच्छी तरह निर्णय की गई हिंसा है।
"तत्रऽहिंसा सर्वदा सर्वथा सर्वभूतानामद्रोहः"
अर्थ - सदा, सर्व प्रकार से मन-वचन-काय, कृत-कारित-अनुमोदना पूर्वक प्राणी मात्र के प्रति अद्रोह-वात्सल्य भाव का होना अहिंसा है।॥ २॥ SARANAS A NAEMRATILAVARASAANZANANAKIRANA
धनिषद श्रावकाचार-~११६