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SAKAKAKALAGAYASASASAYAN
• सातवाँ वात्सल्य अंग
AETEAUAVALAUREAES
सुखद अहिंसा धर्म से, धर्मी जनों से प्रेम ।
कपट रहित गौ वत्स सम, पाले वत्सल एम ॥ १४ ॥
अर्थ अहिंसा जिनागन का प्राण है, मानव जीवन की रीढ़ है, मानवोन्नति
की मूल है, आत्मा को परमात्मा बनाने का मोहन, अमोघ मंत्र है। आगम में कहा है जो मानव प्राणीमात्र में जिनवर का रूप देखता है और जिनवर में जीव का आरोपकर परखता है वह अतिशीघ्र निर्वाण पद प्राप्त करता है ।
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धर्म के सदृश ही धर्म में अनुरागी धर्मात्माओं के प्रति जो अति स्नेह, प्रेम का व्यवहार करता है वह वात्सल्य अंग कहलाता है। जिस प्रकार गाय प्रत्युपकार की आशा रहित निष्कपट भाव से, सरल परिणामों से अपने बछड़े - बछड़ी के प्रति अनुराग करती है उसी प्रकार धर्म और धर्मात्माओं में प्रेम करना वात्सल्य है | अहिंसा क्या है ? "अत्ता चैव अहिंसा" अर्थात् आत्मा ही अहिंसा है।
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समन्तभद्रस्वामी ने भी कहा है "रत्नत्रयधारी मुनि, आर्यिका श्रावकश्राविका, व्रती - अव्रती सम्यग्दृष्टियों के प्रति यथायोग्य प्रेम, वात्सल्य भाव रखना, निष्कपट भाव से विनय करना, नमस्कार, आसन प्रदान, मार्गानुगमन, वन्दना, विहार करना, आहारादि देना, सेवा सुश्रूषा करना, वैयावृत्ति करना, साधर्मियों का सम्मान करना, मधुर व्यवहारादि करना वात्सल्य है। इस महान
१३. कामक्रोधमदादिषु चलयितुमुदितेषु वर्त्मनो न्यायात् ।
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श्रुतमात्मनः परस्य च युक्त्या स्थितिकरणमपि कार्यम् ।। २८ पु. सि. ।। अर्थ - जीव को न्याय मार्ग धर्म पथ से विचलित करने के लिये जब काम क्रोध मद आदि का उदय होता है तब पापोदय से ग्रस्त होने पर अपने को और दूसरे जीवों को शास्त्र अनुसार युक्ति अनुसार समीचीन न्याय मार्ग पर स्थिर करना सम्यग्दृष्टि का स्थितिकरण अंग है ॥ १३ ॥
ZACZNAYAGARASHLANAGACHCASTYAGRUASACARACASABASASALA धर्मानन्द श्रावकाचार १०