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३. लोकमूढ़ता - धर्म समझकर सागर की लहर लेना । नदी में स्नान करना, पत्थरों का ढेर लगाना, पर्वत से गिरना, जीवन्त अग्नि में जलकर सती होना, रेत-धूलि का ढेर लगाना इत्यादि लोकमूढ़ता है। ये तीनों मूढ़ताएँ विपरीत होने से दुःख सागर-संसार में डुबोने वाली हैं। इनसे अपनी रक्षा करना ही सच्चा विवेक है। अतः विवेकी बनो ॥१६॥
१६. (क) आपगासागरस्नान मुच्चयः सिकताश्मनाम् ।
गिरिपातोऽग्निपातश्च लोकमूढं निगद्यते ॥रल. श्रा. २२ ॥ अर्थ - धर्म बुद्धि से नदी वा समुद्र में स्नान करना, बालू-रेत की ढेर लगाना, पर्वत से गिरना, अग्नि में जलना आदि लोकमूहता है। (ख) वरोपलिप्सयाशावान् रागद्वेषमलीमसाः।
देवतायदुपासीत, देवतामूढमुच्यते ।। अर्थ - आशा-तृष्णा के वशीभूत होकर वांछित फल की प्राप्ति की अभिलाषा से राग-द्वेष से मलिन-काम क्रोध मद मोह तथा भय आदि दोषों से दूषित देवताओ को, देवाभासों को, देवबुद्धि से पूजना उनकी उपासना करना देवमूढ़ता है। ग) सग्रन्थारम्भहिंसानां संसारावर्तवर्तिनाम् ।
पाखण्डिनां पुरस्कारो, ज्ञेयं पाखण्डिमोहनम् ।। २४ रत्न. श्रा. ।। अर्थ - जो धन-धान्यादि परिग्रह से सहित है, कृषि वाणिज्यादि सावध कर्म करने से आरंभ सहित है। आरंभ, उद्योगी. संकल्पी तथा विरोधी हिंसा में रत है।
संसार में भ्रमण के कारण भूत विवाहादि कर्मों द्वारा दुनिया के चक्कर-गोरख धन्धे में फंसे हुए हैं ऐसे दुष्ट पाखण्डियों को सुगुरु बुद्धि से पूजना उनका आदर सत्कार करना गुरुमूढ़ता या पाखण्डिमूढ़ता है।
“विशेष - पापं खण्डयति इति पाखण्डी" जो पाप का खण्डन करने वाला हो वह पाखण्डी है यह निरुक्ति अर्थ है। इस निरुक्ति का अर्थ सत्साधु है। जो सत्साधु नहीं है उन्हें भी सच्चा साधु मानना पाखण्डी मूढ़ता है । रूढ़ेि से तो "पाखण्डी'' शब्द कुगुरू के लिए प्रसिद्ध है। कुगुरू में गुरू बुद्धि होना पाखण्डी मूढ़ता है ।। १६ ।। VAKANSAS AHLAKATULABATUSASUNTSUNALUCARANA
पाणि श्रावकाचार९४