________________
ARRAVINTRARARAANANANUZTURURZE atata • सम्यक् चारित्र का स्वरूप
अहिंसा पोषक शुभ क्रिया, सम्यक् चारित्र जान। पालें इसे श्रावक मुनि, निज निज शक्ति प्रमाण ।। ३५ ॥ अर्थ - चारित्र का अर्थ है आचरण-क्रिया कलाप और विषय-कषायों का त्याग। सर्वत्र जहाँ जीव दया का ध्यान रहता है। अहिंसा का लक्ष्य होता है उन क्रिया-कलापों-व्यवहार को सम्यक् चारित्र कहते हैं। इसका पालन मुनिराज
और श्रावक दोनों ही अपनी-अपनी योग्यता, शक्ति और पदानुसार आचरण करते हैं । यह व्यवहार से है परन्तु निश्चय से आत्मानुभव में विचरण करना सम्यक् चारित्र है। अर्थात् बाह्याभ्यतर क्रियाओं का निरोध कर निज स्वरूप में रमण करना सम्यक चारित्र है ।। ३५ ॥
३५. हिंसानृतचौर्येभ्यो, मैथुनसेवापरिग्रहाम्यां च।
पाप प्रणालिकाभ्यो, विरतिः संज्ञस्य चारित्रम् ॥४९॥ रत्न. श्रा. ।। अर्थ - जिनसे पापासव होता है ऐसे हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह संचय रूप कार्यों से विरक्त होना चारित्र है।
और भी - तत्त्वार्थराजवार्तिक के अनुसार
संसारकारण निवृत्ति प्रत्यागूर्णस्य ज्ञानवतो वाह्याभ्यन्तरक्रियाविशेषोपरमः सम्यक् चारित्रं - प्र. अ. वार्तिक-३
अर्थ - संसार के कारणों के सर्वथा नाश की इच्छा रखने वाले ज्ञानवान् आत्मा की शारीरिक और वाचनिक बाह्य क्रिया तथा मानसिक अंतरङ्ग क्रियाओं का विशेष रूप से रूक जाना है वही सम्यक् चारित्र है।
सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में भी ऐसा ही उल्लेख है
संसार कारण निवृत्तिं प्रत्यापूर्णस्य (उद्यतस्य) ज्ञानवतः कर्मादाननिमित्त क्रियोपरमः सम्यक् चारित्रं । अर्थ पूर्ववत् जानना ।। ३५ ।। MASTERRIEReleseKESEASANKERSaesKERaamanamancessarasa
मनिन्द्र श्रावकाचार-१०९