________________
WARREAVANCEANAKARĀMATARAKIRA ARARAKISAKATARUER • प्रथम निःशीकत अंग का लक्षण-..
आप्त कथित जीवादि सब हैं अनेकान्त स्वरूप ।
अन्य नहीं, अन्य प्रकार नहीं, यही निशंकित अंग ॥ ८॥ अर्थ - परमदेव अरहंत तीर्थंकर देव उपदष्टि तत्त्वों के विषय में ये अनेकान्त धर्म सिद्ध जैसे हैं वैसे ही हैं, अन्य प्रकार नहीं हो सकते। अन्य प्रकार से जो एकान्तवादियों द्वारा परिकल्पित हैं उस प्रकार वे समीचीन तत्त्व कदाऽपि नहीं हो सकते इस प्रकार का अकाट्य श्रद्धान करना निःशंकित अङ्ग है । इस अंग का धारी विपत्ति, उपसर्ग आदि आने पर भी अपने श्रद्धान से उसी प्रकार चलायमान नहीं होता जैसे असि-तलवार पर चढ़ी चमक उसके छिन्न-भिन्न होने पर भी विचलित चलायमान नहीं होती। जिस प्रकार अंजन चोर ने श्रेष्ठी द्वारा प्राप्त मंत्र श्री णमोकार पर अटल विश्वास, श्रद्धान कर निर्भय होकर क्षणमात्र में विद्यासिद्ध कर ली फलतः कैलाशगिरि पर जा निर्ग्रन्थ दिगम्बर साधु बन घोर तपस्या में लीन हो गया । घोर साधना निश्छल ध्यान द्वारा अष्टकर्मों को विध्वंश कर अंजन से निरंजन बन गया । अनन्त काल को अनन्तचतुष्टय हो गया ।। ८॥ • द्वितीय निश्काञ्छित अंग का लक्षण
क्षणभंगुर जान राज्यादि पद, पुत्र धन-धान्य सम्पदा। धर्मानन्दी चाहे नहीं इनको, नि:कांक्षित हो सर्वथा ॥९॥ अर्थ - सम्यग्दृष्टि सांसारिक शरीर, भोग, सम्पदा, धन, दारा आदि ८. सकलमनेकान्तात्मकमिदमुक्तं वस्तुजातमखिलज्ञैः।
किमु सत्यमसत्यं वा न जातु शंकेति कर्त्तव्या ।। पु. सि. (२३ । अर्थ - सर्वज्ञों द्वारा उपदिष्ट सम्पूर्ण वस्तु समूह अनेकान्तात्मक कहा गया है। वह कथन सत्य है या असत्य ? ऐसी शंका न होना निःशंकित अंग कहलाता है ।।८।। NagaegsasuSHRASRERHastaraxISAMANASIMKesastesareezera
धर्माणब्द प्रावकाचार८४