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ANARUDAKARANAVARASA
tak UAAVAN RENSANA • अभक्ष्य के दोष
मद्य, मांस, मधु निशि अशन, उदम्बर फल संधान । कंदमूल रस से चलित, तज अभक्ष मतिमान ॥ २३॥
अर्थ - मद्य-शराब, मांस-द्विद्रियादि जीवों का कलेवर मांस कहलाता है, अर्थात् दो इन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय पर्यन्त जीवों को मार कर दुष्ट, निर्दयी, हिंसक, घातक जन मांस का उत्पादन कर रहे हैं, प्रतिदिन हजारों गायें, बछड़े
आदि निरपराध, मूक प्राणियों के घात से उत्पादन होता है वह मांस है। मधु मक्खियों का उगाल-वमन मधु कहलाता है। घातक जन छत्तों को तोड़कर रस निचोड़ते हैं जिसमें उनके अण्डे-बच्चों के कलेवरों का भी रस निचोड़ कर आता है। जो महा पापोत्पादक होने से सर्वथा अभक्ष्य है।
रात्रिभोजन करना तो महा गर्हित है ही। जैन सिद्धान्त में तो इसे जन्मजात त्याज्य कहा ही है, अन्य हिन्दू धर्म में भी निषिद्ध कहा है यथा देखिये -
अस्तंगते दिवानाथे तोयं रुधिर मुच्यते ।
अन्नं मांस समं प्रोक्तं मार्केण्डे महर्षिणः॥ अर्थात् मार्कण्ड पुराण में लिखा है कि सूर्यास्त होने पर जलपान करने से रक्तपान करने के सदृश पाप है और अन्न भक्षण भोजन करना मांस खाने के समान पापोत्पादक है। जैनाचार्य श्री रविषेण स्वामी पद्मपुराण में लिखते हैं कि वनमाला का लक्ष्मणजी के साथ पाणिग्रहण संस्कार हो गया । पुनः वे आगे जाने लगे तो वनमाला ने भी साथ जाने का आग्रह किया। लक्ष्मण के निषेध करने पर वनमाला अति शोकाकुल हुयी । लक्ष्मण ने धैर्य बंधाते हुए कहा,
....भावार्थ - यहाँ बाईस अभक्ष्यों के नाम हैं। घोर बड़ा का अर्थ है - अमर्यादित दही में डाला गया बड़ा। आमिष का अर्थ है मांस शेष अर्थ शब्द से ही सुगम हैं। इनके भक्षण से बहुत जीवों का घात होता है अतः इन्हें अभक्ष्य कहा है ।। २२।। LAAM KARACABANATA SANA ILANARAYARIK2
धमलिन्द नायकाचार-७०