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marAmAMERAMANANANENamasanSUNAKAMANANANESex • अन्याय का लक्षण
धर्म जाति न्याय राज्य के, जे विरुद्ध आचार। ये सब अन्याय त्याज्य हैं, हे बुध धर्माधार ॥ १७ ॥
अर्थ - धर्म, जाति, न्याय और राज्य क्या है ? इनका लक्षण व स्वरूप क्या है ? यह अवगत करना प्रथम आवश्यक है। क्योंकि "बिना दोष गुण की परख विना शुभाशुभ में प्रवृत्ति व निवृत्ति नहीं हो सकती है।" जैनागम धर्म को दो भागों में विभाजित किया है। यद्यपि धर्म तो एक अखण्ड अविचल है किन्तु मानव जीवन की चाह या योग्यता की अपेक्षा भेद किया है।
वे हैं - १. श्रावक धर्म और २. यति धर्म । इनकी क्रिया-कलापों एवं भाव विचारों के माध्यम से षट्कर्मों - १. देवपूजा, २. गुरू उपासना, ३. स्वाध्याय, ४. संयम, ५. तप और ६. दान की अपेक्षा श्रावकी का धर्म बतलाया है। अर्थात् इन कर्तव्यों का प्रतिदिन समय और शक्ति अनुसार यथाविधि पालन करना श्रावक धर्म है। इसी प्रकार पंच महाव्रत, पाँच समिति, दस प्रकार उत्तम क्षमादि धर्म, षडावश्यक (वंदना. स्तुति, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, समता
और कायोत्सर्ग) पालन करना, रत्नत्रय धारण, चारित्र पालन करना यतिधर्म है। इनमें यथोचित आगमानुसार प्रवृत्ति नहीं करना धर्म विरूद्ध अन्याय है। यह आत्मपतन का मूल कारण है, नरक का द्वार है। दुर्गति का हेतु और सद्गति की अर्गला है। अतः धर्म विरुद्ध आचरण अन्याय है। यह सर्वथा त्याज्य ही है।
माता के वंश (नानी की) परम्परा जाति और पिता की परम्परा कुल कहलाता है। इनके विवाह आदि के विधि विधान का उल्लंघन कर विजातीय विवाह, विधवा विवाह, अभक्ष्य भक्षण करना आर्ष पराम्परा के विपरीत आचरण करना भी अन्याय है। राज्य की चोरी अर्थात् सेलटैक्स, इन्कमटैक्स आदि नहीं देना, चोरी आदि करना आदि राज्य विरुद्ध अन्याय बंध बन्धन का कारण है।
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धागनिन्द श्रावकाचा-६