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KARSANKETERESUSARMerasaraNRSAEXERRIERearATESRUSTERED ___ अर्थ - सभ्यता मानव जीवन का श्रृंगार है। सभ्य शब्द का प्रयोग मानव प्रतिकर्म के साथ-साथ रहता है। रहन-सहन, व्यवहार, बोल-चाल आदि । अर्थात् वचन वर्गणा से ही उसके उन्नत, उत्तम व नीच आचार-विचार आदि की परीक्षा हो जाती है। मानवता की परख कसौटी वाणी है। इसीलिए नीतिकार कहते हैं
वाणी ऐसी बोलिए मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करें, आपहुं शीतल होय।। अर्थात् वाणी का प्रयोग स्व-पर उपकार की भावना से करना चाहिए। हमारे पूज्य आचार्यों ने भी यही भाव स्पष्ट करते हुए कहा है कि - अयोग्य अर्थात् गर्हित (निंद्यनीय) सावध (पाप सहित) और अप्रिय (पर पीड़ाकारक) वचनों का प्रयोग सत्पुरुषों को कदाऽपि नहीं करना चाहिए।
१. गर्हित वचन - चुगली रूप, हास्य मिश्रित, कठोर, अयोग्य, प्रलाप भरे (व्यर्थ की गपशप) करने वाले वचनों को गर्हित वचन कहते हैं। इस प्रकार के वचन लोक नीति के विरुद्ध हैं क्योंकि इनमें असत्य और प्रमाद संयुक्त रहता है । ये पारस्परिक प्रेम, स्नेह और शुभ सम्बन्ध का घात कर वैर-विरोध, अहंकार उत्पादक होते हैं। अतः सर्वथा त्याज्य हैं, लोक नय विरुद्ध हैं।
२. सावध - जो वचन छेदने, भेदने, मारने, ताड़ने, शोषण करने वाले अथवा निंद्य व्यापारादि के उपदेशक, चोरी आदि कर्म में प्रयोजनीय हैं वे सर्व सावध वचन कहे गये हैं क्योंकि ये पापोत्पादक हैं। जिन-जिन वचनों से पाप रूप प्रवृत्ति होती है वे सर्व इस लोक और परलोक दोनों ही नाशक दुर्गति के कारण होने से लोक व्यवहार में अयोग्य कहे हैं। इनके द्वारा लोक नय का घात होता है अतः विरुद्ध हैं।
३. अप्रिय - जिन वचनों से पारस्परिक प्रीति नष्ट है, आपसी वैरविरोध, कलह उत्पन्न हो, भय और खेद, शोक, चिन्ता, ताप, संताप, पीड़ा MAKANAN DARASARANASASAKATARAKZA XHAKARARAKANAN
धमनिणद श्रावकाचार-६५