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WASTAVANA +24440ZSANATZUAKAMATA VAATA स्वरूप तो श्री सर्वज्ञ प्रणीत एक रूप ही है । परन्तु कुछ सर्वज्ञ मन्यमाना जनों द्वारा विभिन्न प्रकार से कल्पित किये हैं। जो हो सभी धर्मों की आधार शिला अहिंसा धर्म को ही स्वीकार किया है। अत: “अहिंसा परमो धर्मः" सर्वत्र मान्य है। अतएव मैं इस ग्रन्थ में हिंसाधर्म का हो स्वरूप निरूपण करूंगा। श्री जिनेन्द्र भगवान ने सामान्य विशेष रूप से जैसा वर्णन किया है तदनुसार ही यहाँ निरूपण करने जा रहा हूँ। गृहस्थाश्रम का धर्म इसी रूप है ।। २॥ • सर्वमान्य धर्म
महापाप हिंसा तजो, यह दुःखों की खान । सब धर्मों का सार यह, श्रावक बनो सुजान ॥ ३ ॥ अर्थ – संसार के अनेकों दुःख हैं - मानसिक, शारीरिक, भौतिक आदि। जीव निरंतर नाना यातनाओं का शिकार बनता रहता है। विचार करें आखिर इन कष्टों का कारण है क्या ? सभी दुःखों की जननी हिंसा है। यह महापाप अधर्म है। अतएव हिंसा के त्याग से ही धर्म होता है। सभी धर्मों का सारभूत दया धर्म है जो गृहस्थ इसका पालन करता है वही श्रावक कहलाता है। उसका धर्म श्राक्क धर्म है ।। ३ ।। • श्रावक धर्म स्वरूप
देवशास्त्र गुरु भक्ति युत, पूजा दान महान् ।
आठों मद का त्यागना, श्रावक धर्म कहाय ॥४॥ अर्थ - प्रतिदिन जो भव्यात्मा, देव, शास्त्र और गुरूओं की भक्ति, पूजा करता है, सुपात्रों को चार प्रकार का दान देता है, सम्यग्दर्शन के घातक आठ
३. अहिंसा परमोधर्म यतोधर्म स्ततो जयः । (जैन शास्त्र)
अर्थ - अहिंसा परम धर्म है, जहाँ धर्म है वहाँ स्वयमेव विजय मिलती है।।३।। BANGUNASABARAKAUNASABARRUTXANAYARAK
धमलिन्द श्रावकाचार-४४६