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SABASABASEUR
• अहिंसा धर्म का प्रयोजन
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आत्म शुद्धि की प्राप्ति का, अहिंसा उत्तम द्वार ।
जो चालै इस मार्ग पर, पावै सुक्ख अपार ॥ ६ ॥
अर्थ - अनादि काल से आत्मा के साथ अष्ट कर्म मल लगा है। इस मलिनता की शुद्धि का उपाय अहिंसा धर्म ही है। मल का उच्छेदन ही सुख है । इसलिए जो सुखसागर में अवगाहन करना चाहते हैं उन्हें इस अहिंसापथ का राही बनना चाहिए ॥ ६ ॥
६. तत्राऽहिंसा सर्वदा सर्वथा सर्वभूतानामनभिद्रोह: । अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनमिदम् परोपकारः पुण्याय पापाय पर पीडनम् ।
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अर्थ सर्वदा हर समय, हर क्षण, सर्वथा - हर प्रकार से अनुकूल प्रतिकूल सभी परिस्थितियों में सभी जीवों पर द्रोह का न होना उनके रक्षण का भाव होना, वात्सल्य भाव का होना पूर्वोक्त अहिंसा का स्वरूप है। १८ प्रकार के पुराणों में - वेद के रचयिता व्यास का यह वचन है- परोपकार पुण्यार्जन के लिये और पर पीड़ा पापार्जन के लिए कारण है अतः परोपकार वृत्ति को अपनाकर अहिंसाधर्म को विस्तरित करना चाहिए, अहिंसा लक्षण धर्म को अपने जीवन में वही साकार कर सकता है जो परोपकारी है पर पीड़ा आदि हिंसा से सदा दूर रहता है।
स्वयंभू स्तोत्र में नमिनाथ भगवान् की स्तुति करते हुए श्री समन्तभद्राचार्य लिखते हैं
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अहिंसाभूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमं,
न सातत्रारम्भोऽस्त्यणुरपि च यत्राश्रमविधौ ॥ ४ ॥
अर्थ - हे भगवान् प्राणियों की अहिंसा जगत् में परम ब्रह्म रूप से प्रसिद्ध है अर्थात् अहिंसा ही परम ब्रह्म है। यह अहिंसा उस आश्रम विधि में नहीं है जिसमें कि थोड़ा भी आरम्भ होता है । इत्यादि ।
अन्ततः - परस्परं विवदमानानां धर्मशास्त्राणां अहिंसा परमोधर्मः इत्यत्रैकमतम् । किन्ही- किन्हीं कारणों से परस्पर विवाद को प्राप्त हुए जो धर्म शास्त्र हैं उनमें अहिंसा...
KANAKALAGAKÁRANI
(YANALAGAVACHUTEAUTYAUTYAVAEZUT धर्मानन्द श्रावकाचार ~४९