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चलें, मन के-पार
और निराधार खड़ा हो, उस समय थोड़ी-सी सूझ भी डूबते को तिनके-का-सहारा बनती है । असफलता-पर-असफलता पाने वाले सम्राट के लिए मकड़ी की सोलह बार फिसलन और आखिरी बार घर-जाल-की-देहरी-पर दस्तक सफल प्रेरणा का लाजवाब जीवन्त सूत्र सिद्ध हुआ है ।
__ मनुष्य का प्रयास रहना चाहिए कि वह जीवन को भरपूर सफलता से जिये । तनाव और घुटन-भरी जिंदगी जीना चलते-फिरते 'शव' को कंधे पर ढोना है।
तनाव दुःखदायी स्वप्न-यात्रा है । सपनों के साथ बितायी गई रात मात्र समय बिताना है, नींद की आवश्यकता को आपूर्त करना नहीं । धन, परिवार या अन्य सुविधाएँ होते हुए भी व्यक्ति घुटन-भरी जिन्दगी क्यों जिये ?
धुएँ-सी जिन्दगी जीने के बजाय दीपक-सी जिन्दगी जीना लाख गुना बेहतर है । धुएँ-सी जिन्दगी मौत है । जीवन, जलना है अनिमेष दीपक का ।
मनुष्य विवश है । उसकी विवशताएँ ही उसे प्रेरित करती हैं स्वयं के लिए सोचने को । भीड़-भरी जिन्दगी में भी मनुष्य को अपने लिए सोचने की कुण्ठित उन्मुक्त जिज्ञासा जाग्रत होती है । वह अपनी मुँह-बोली मौलिकता के अस्तित्व को पहचानने के लिए अन्तःप्रेरित होता है | उसकी यह अन्तःप्रेरणा ही अध्यात्म की ओर कदम बढ़ाना है ।
___ मनुष्य की अन्तर-जिज्ञासा यदि सघन-से-सघनतर होती जाए, तो सत्य की खोज के लिए वह न केवल चिन्तन करता है, अपितु अपने कृतित्व को उस पथ पर संयोजित भी करता है । वह अपने-आपसे ही पूछता है- आखिर मैं कौन हूँ, मेरा जीवन-स्रोत, मेरी मौलिकताएँ और मेरे मापदण्ड क्या हैं, यह दुनिया क्या है, और मैं यहाँ क्यों हूँ; सुख-सुविधाओं के अम्बार लगने के बावजूद दुःख और तनाव के कारण क्या हो सकते हैं ?
चिंतन की गहराइयों में उसकी जहाँ तक पहुँच हो सकती है, वह तल-स्पर्श करने का अदम्य पुरुषार्थ करता है । वह उस आखिरी सत्ता को भी खोज निकालना चाहता है, जो संसार-चक्र की धुरी है | चिंतन की इस आत्यन्तिक गहराई का नाम ही जीवन-समीक्षा और योग-अनुप्रेक्षा है ।
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