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ॐ : मन्त्रों का मन्त्र
१३६ ही मनुष्यता के चरण बढ़े । जब मनुष्य वापस अपने शब्द पर लौट आयेगा, तो उसकी मनुष्यता भगवत्ता का रूप अंगीकार कर लेगी ।। ___एक बात तय है कि ध्वनि में ऊर्जा समायी हुई है । यदि ध्वनि की शक्ति का प्रयोग किया जाये, तो हम सर्दी में भी गर्मी का अहसास कर सकते हैं । हिमालय की पहाड़ियों में रहने वाले नंगे बाबा लोग ध्वनि के परा-विज्ञान से परिचित हैं । आम आदमी का तो गर्मियों के मौसम में भी हिमालय में रहना कठिन होता है । वहीं ये सन्त-योगी लोग भयंकर बर्फीली सर्दी में भी सहज भाव से रहते हैं और वह भी पूरी तरह नग्न । कइयों ने वस्त्र भी पहन रखे हैं, तो वह सिर्फ अंग ढकने जितने हैं । निश्चित तौर पर उन्होंने ध्वनि से उच्चताप पैदा करने की प्रक्रिया का आविष्कार कर लिया है । वे अपने श्वासोश्वास में ही ध्वनि का एक गहनतम मंथन करते हैं । योग-मार्ग में जिस प्राणायाम को अधिक महत्व दिया गया है, यदि हम समग्र और प्रखर हो जायें तो सर्दी के मौसम में भी शरीर से पसीना चूने लगता है। शरीर में भी एक तापमान होता है । श्वास में भी ऊष्णता होती है । यदि ठिठुरते हुए दोनों हाथों को मिलाकर जोर से मला जाये तो हाथ में भी गर्माहट आ जाती है । ऐसे ही श्वास को भी तीव्र गति के साथ लिया-छोड़ा जाये, तो शरीर में आग पैदा हो जाती है ।
तिब्बतियन बौद्ध भिक्षु बर्फीले मौसम में भी शरीर से पसीना निकाल लेते हैं । इसके लिए वे उच्च ध्वनि-उच्चार का प्रयोग करते हैं, उनका एक प्रसिद्ध मंत्र है- "ॐ मणि पद्मेहुम्" । वे इसे बड़े जोर से रटते हैं और बड़े तीव्रगामी वेग के साथ । निश्चित तौर पर ऐसा करने से शरीर में गर्मी पैदा होगी । ऊष्णता के सम्पादन का कार्य मन्त्र नहीं करता; शब्द या मन्त्र को दोहराने की त्वरा और तीव्रता करती है । मन्त्र इतनी तीव्रता पकड़ लेता है, मानो ओवरलेपिंग हो । मन्त्रोच्चार में सन्धि अंश-भर भी न रहे । ऐसी स्थिति हो जाये जैसे दो किलोमीटर दौड़ने के बाद होती है । हाँफने लग जाये वह ।
एक सन्त हुए सहजानन्दघन । वे योगी थे । सर्दी के मौसम में वे बीकानेर के रेगिस्तानी टीलों पर साधना किया करते । अन्धकार-से-भरी
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