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श्वांस- संयम से ब्रह्म-विहार
पीछे शेष रहेगा शून्य ।
जिसे विचार कहा गया है, मन कहा गया है, आज का मनोविज्ञान उसे 'कांशियस' तथा 'अनकांशियस माइंड' कहता है । शरीर को एकाग्र बनाना हो तो उसके लिए 'हठयोग' है, लेकिन विचारों की एकाग्रता के लिए 'मंत्रयोग' का सहारा लेना जरूरी है । ध्यान के समय जिस व्यक्ति के मन में विचारों का बवण्डर उठता हो, वह शांत भाव से अपने आपको एकाग्र करने का प्रयास करे । इसके बाद प्राणायाम के साथ सांस अन्दर ले तथा सांसों की प्रेक्षा करे, अनुप्रेक्षा करे । सांस लेने और छोड़ने के साथ ही 'ओ३म्' मंत्र को अपनाएँ । इससे एक ऐसी लय पैदा होगी, ऐसी राग निपजेगी कि आपको लगेगा कि सारे विचार खो गए हैं । ओ३म् को अपनी सांसों में इतना रमा लेना कि सिर्फ ओ३म् ही रह जाए । ऐसा लगे कि 'ओ३म्' को ही अन्दर खींच रहे हो और 'ओ३म्' ही बाहर निकाल रहे हो । ऐसा करने से एक संगीत पैदा होगा, ऐसी झंकार पैदा होगी, जो आपको विचार से देह से, एकदम अलग कर देगी । आप अपने को मन से अलग समझेंगे ।
'प्राणायाम' प्राण के विभिन्न तत्त्वों को अलग-अलग डिब्बियों में ले जाकर रखना है, ताकि वह प्राण हमें भीतर से जाग्रत और स्पन्दित कर सके । मोटे तौर पर हम दो-तीन तरह के प्राणायाम कर लें तो भी काफी है। अनुलोम-विलोम, दीर्घ श्वास, सौम्य भस्त्रिका, कपाल - भस्त्रिका |
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इन तीन-चार में से कोई भी प्राणायाम कर लें तो हम पाएंगे कि भीतर की गंदगी का विरेचन शुरू हो गया । अपने आपको शून्य में पाओगे तथा शरीर हल्का होता चला जाएगा और तनाव मुक्त हो जाओगे । प्राणायाम कर लो तो अपनी सांसों में अर्द्ध श्वास-प्रश्वास के साथ ओऽम् की लयबद्धता को भी जोड़ लेना । आपको लगेगा कि आप निःशब्दता में शब्द जोड़ रहे हैं । उस समय 'ओऽम्' की अनुगूंज होगी । उसी का नाम आत्म-अनुभूति और आत्म-स्पन्दनों का साक्षात्कार है । वहीं पर सधती है मन की एकाग्रता ।
वास्तव में ध्यान योग का मूल उद्देश्य जीवन को उसकी जीवन्तता से संयोजित रखना है | ध्यान का लक्ष्य व्यक्ति को मृत्यु की ओर बढ़ाना नहीं है,
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