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तुर्या : भेद-विज्ञान की पराकाष्ठा
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कहते हैं मन से बुरा न सोचा जाये । किसी को चांटा लगाना गलत है, परन्तु यही नहीं मन में चांटा लगाने का भाव लाना ही गलत है । मैं तो यों कहूँगा कि स्वप्न में भी किसी को चाँटा लगाना, अपराध का बीज बोना है । यदि स्वप्न में किसी को चाँटा लगा दिया तो एक बात तय है। कि बीज का अंकुरण तो हो गया है, सम्भव है कांटे लग आने में कुछ समय लगे ।
बच्चा मन में क्या सोचता है, यह जानने के लिए हर रोज उससे यह पूछो कि आज तुमने क्या सपना देखा ।
बचपन से ही हर बच्चे के स्वप्न का अध्ययन किया जाना चाहिए । न केवल अध्ययन बल्कि स्वप्न के संकेतों के अनुसार जीवन को भी ढाला जाना चाहिए । यदि बच्चा कहे कि उसने सपने में पड़ौस के बच्चे को थप्पड़ मारा है, तो इसका अर्थ यह हुआ कि उसके भीतर मारने की वासना छिपी हुई है हम चाहते हैं कि बच्चा बड़ा होकर सौम्य, सुशील और सरल बनें, तो हमें बचपन से ही उसके प्रति चौकन्ना रहना होगा । हम अपने बच्चे को पड़ौस के लड़के के पास भेजें और बच्चे से कहें कि जाओ, उससे क्षमा माँगो । उससे कहो कि मैंने तुम्हें चांटा मारा, सपने में ही सही, पर मुझसे भूल हो गई ।
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यह प्रक्रिया चित्त-शुद्धि की है । बुरे संस्कार कहीं चित्त में दमित न हो जायें, जड़ न पकड़ लें, इसलिये चित्त शुद्धि और उसकी निर्मलता के उपाय किये जाने चाहिए ।
स्वप्न-वृत्ति की अगली कड़ी है निद्रा । स्वप्न का सम्बन्ध तो अतीत और भविष्य से है, जबकि नींद का सम्बन्ध वर्तमान से है । वर्तमान अतीत और भविष्य के दो किनारों को एक-दूसरे से मिलाने का सेतु है । जागरण वर्तमान के बनते-बिगड़ते रूप में ध्रुवता व शाश्वतता की खोज का अभियान
।
जाग्रत - पुरुष वह है जो स्वयं
है । समय की चक्की चलती रहती है को कील / केन्द्र पर केन्द्रित कर लेता है
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महावीर ने इसे सम्यक् दर्शन
कहा है । ऊर्जा का केन्द्रीकरण और साक्षित्व का सर्वोदय ही सम्यक्
दर्शन है ।
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