Book Title: Chale Man ke Par
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 251
________________ २४२ चलें, मन-के-पार बनाम सबीज समाधि में शरीर, विचार और मन तीनों ही बने तो रहते हैं, टूट जाता है सिर्फ तीनों का लगाव | बुद्धि का भी उपयोग होता है । यह वह बुद्धि नहीं है, जिसके खाते में सुमरने-बिसरने की नीतियाँ दर्ज हों । बुद्धि प्रज्ञा बन जाती है- सवितर्क, सम्प्रज्ञात, सानन्द, सदाबहार । वहाँ होती है प्रज्ञा ऋतम्भरा, यानि पूरी तरह विकसित/प्रकाशित- 'ऋतम्भरा तत्र प्रज्ञा' । कैवल्य सबसे मुक्ति है, सारे सम्बन्धों से छुटकारा है । कैवल्य वह समाधि है, जिसमें वृक्ष तो रहता ही नहीं है, बीज भी खो जाता है । इसलिए कैवल्य वास्तव में निर्बीज समाधि है । कैवल्य तो अध्यात्म-प्रसाद है । अस्तित्व का सबसे बड़ा सौभाग्य है । कैवल्य वह स्थिति है, जिसके आगे और कोई गन्तव्य नहीं बचता । जहाँ जाकर सारे चरण रुक जाते हैं, बुद्धि अपने हथियार डाल देती है, तर्क तेजहीन हो जाते हैं, मन की चिता बुझ जाती है । जहाँ सबका निरोध हो जाता है, सिर्फ स्वयं की मौलिकता बची रहती है, कृष्ण की भाषा में वह ईश्वर-प्राप्ति है, महावीर के शब्दों में वह मोक्ष है । बुद्ध उसे निर्वाण कहते हैं और पंतजलि उसे निर्बीज समाधि । ये सारे सम्बोधन घुमा-फिराकर उसी एक स्वरूप के उपनाम हैं, जिसे मैंने 'कैवल्य' कहा है, पूर्ण मुक्ति । 000 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258